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________________ १८ ज्ञानानन्दरन्नाकर। वताऊं, नमि नाथ पद्म दल चिन्ह चितार नमों में । वहु विनय सहित आठों मद टार नमों मैं ॥ ३ ॥ श्री नेमि शंख फनि पार्श्वनाथ पदराजे, हरि वीर नाथ के चरणों चिन्ह विराजे, ऐसे जिनवर पद नवत सर्व दुःख भाजे, फिर. भूल न आवे पास लखत दृग लाजे, कहै नाथूराम प्रभु जगसे तार नमों मैं । बहु विनय सहित आठो मदटार नमों मै ॥ ४ ॥ जिन भजन का उपदेश । ५० । मन वचनकाय नित भजन करो जिनवर का, यह मुफल करो पर्याय पाय भव नरका ॥ टेक ॥ निवसे अनादि से नित्य निगोद मझारे, स्थावर के तनु धारे पंच प्रकारे, फिर किलत्रय के भुगते दुःख अपार फिर भया असेनी पंचेंद्रिय बहुवारे. भयो पंचेंद्रिय सेनी जल थल. अम्बर का । यह सुफल करो पर्याय पाय भव नरका ॥ १॥ इस कम से सुर नर नारक बहुतेरे, भवधर मिथ्यावश कीने पाप घनेरे, जिय पहुंचा इतर निगोद किये बहुफेरे, तहां एक श्वास में मरा अगरह वेरे , चिर भूमा किनारा मिला न भवसागर का । यह मुफल करो पर्याय पाय भवनरका ॥२॥ यो लख चौरासी जिया योनिमें भटका वहु बार उदर माता के ऑधा लटका. अब सुगुरु शीख सुन करो गुणीजन खटका, यह है झूठा स्नेह जिसमें तू अटका. नहीं कोई किसी का हितू गैर अरु घरका । यह सुफल करो पर्याय पाय भव नरका ॥ ३ ॥ इस नरतनु के खातिर सुरपति से तरसें, तिसको तुम पाकर खोवत भोंदू करसे, क्षणभंगुर मुख को मीति लागते घरसें, तजके पुरुषार्थ वनते नारी नरसे, मत रत्न गमावो नाथूराम निज करका । यह सुफल करो पर्याय पाय भव नरका ॥ ४ ॥ जिन भजन का उपदेश । ५१ । प्रभु भजन करो तज विषय भोग का खटका । चिरकाल भजन विनातू त्रिभुवन में भटका || टेक ॥ तूने चारों गति में किये अनन्ते फेरा, चौरासी
SR No.010697
Book TitleGyanand Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Munshi
PublisherLala Bhagvandas Jain
Publication Year1902
Total Pages97
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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