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________________ ज्ञानानन्दरन्नाकर। मुंह वावेगा , फिर जने जने के पद पद शिर नोरगा , फल भोगत में हा हा मुह वायेगा , कहे नाथराम तर विचार करना होगा । यश कालवली के अवश्य परना होगा |॥ ४ ॥ ॥शाखी॥ प्रथम प्रभुका नाम ले प्रारम्भ कीने कामजी । कविता करो पिंगल पहा व्याकरण अरु बहु नामजी ॥ ये पढ़ें कविता शुद्ध हो अरु टले विघ्न तमाम जी । यह शीख गुरु की मानिये जिन भक्त नाथरामजी ।। दौड़॥ विना पिंगल के रचो मत छन्द , यही जानो शिक्षा सुखकन्द । गणागण जाने हो आनन्द , सर्व मिट जाय विघ्न के फन्द ।। नाथूराम कहे गणागण भेद , जिन्हें शाखा कवि कर उम्मेद । पिंगल गणागण भेद ४६। गण अगए जानकर चन्द बनाना चहिये । पिंगल विनजाने कभी न गाना पहिये ।। टेक ॥ अव कवि जनके हित हेतु भेद कुछ गाता , संक्षपाशय जो सदा काम में पाता , है वमु प्रकार गण भेद प्रसिद्ध वताता , शुभ चौप्रकार अरु अशुभ चार समझाता , कवि जनों ध्यान में इसको लाना चाहिये पिंगल विन जाने कभी न गाना चहिये ॥ १ ॥ मगण में त्रिगुरु भूदेव लति उपजाना , नगण में निलघु !! मुर देव आयु बढाता , यगण में श्रा दिल | 55 उदक देव मुखदाता , भगण में आदि गुरु | शाश यश दित विड्याता , ये हैं चारों शुभ इन्हें लगाना चहिये । पिंगल विन जाने कभी न गाना चहिये ।। २ ॥ जगण के मध्य गुरु । ऽ । रवि गद दाता जानो, रगण के मध्य लघु | 5 अग्नि मृत्यु दे मानो , सगण के अन्त गुरु || पवन फिरावे थानो , तगण के अंतलघु ss। व्योम अफल पहिचानो, ये हैं
SR No.010697
Book TitleGyanand Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Munshi
PublisherLala Bhagvandas Jain
Publication Year1902
Total Pages97
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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