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________________ जानानन्दरत्नाकर। ॥ कलयुगकी ३॥ कलयुगका कगेंव्यान-वक्त जबसे कलियुग का आयाहै । हुमा दुःखी संसार पापसे पाप जगत में छाया ।। टेक ।। धरायोग तजभोग भई छवि परमहन्स मति स्वयमेव । वीतगग जिन देव दिगम्बर तिन्हें कहै शठनंगा देव ॥ श्रापलिंग शंकर का उमाकी पूजें भगनर त्रियकर सेव । तिन्हें न नंगा कहैं महा निर्लज्ज दुष्टों की देस्रो टेव ।। शिवभक्तों के उरमें उमाकी भग शिव लिग समाया है । हुआ दुःखी संसार पापसे पाप जगत में छायाहै ॥ १ ॥ वीतराग है नग्न मगर मस्तक पद तिनके पूजे परम । महादेव का लिग पूजें जो नाम लिए पानी शरम || बड़े सोच की वात दुष्ट शठाप तो ये वदकरें करम | वीतराग की निन्दा करते जो जगमें उत्कृष्ट धरम | भई प्रगटमति भ्रष्ट जिन ने स्निनसे लिंग पुजाया है हुभा दुःखी ससार पापसे पाप जगत में छाया है ॥ २ ॥ देख तिलोत्तमारूप वदन ब्रह्मा ने काम वश कीने पांच । घर नितम्ब शिरडाय शंभुने किया गबर के आगे नाच ॥ धेरै नारिकारूप कृष्ण जी फिरे मुव्रजमे खोलें कांच । तज पोती लिया पंध घाघरा लिखा भागवत में लो वांच | महा कामके धाम तीनों ऐसा पुराणों में गागाह । हुआ दुखी संमार पापसे पाप जगतमें वायाहे ॥ ३॥ लोम पाप का बाप जिसने ब्राह्मण के घर कीना है बास | मिथ्या अथ बनाय धर्म शास्त्रों काकर दीना है नाश ॥ भक्ति ज्ञान वैराग की तज कामी जो मतिही. नाहै खास । कहैं भक्ति मोगों में विषय पोषण को नाम लीना है तास ॥ ई. श्वर का लेनाम भोगकर पुष्ट करें निज काया है । हुआ दुःखी संसार पापसे पाप जगतमें छायाहै।४॥ब्रह्मा विष्णु महेश तीनोंये काम क्रोध मायाले धाम चीत राग वीनों से वर्जित शुद्ध सार्थक जिनका नाम { पक्षपात तज कहो धर्म से इनमें कौन पूजन के काम । वीतराग या हरि हर ब्रह्मा कहै सभा में नाथूराम । दुष्टों का अभिमान हरण को यह शुभ छद बनायाहै । हुआ दुखी ससार पाप से पाप जगत में छाया है ॥ ५ ॥ * श्रीगुरु प्रशंसा कर्म रेख पर मेख मार के हाथ लिये तदवीर फिरें । पर स्वारथ के कान श्रीमुनिराज बने बन वीर फिरें । टेक ! अन्तर्वाहर त्याग परिग्रह निर्मद नान
SR No.010697
Book TitleGyanand Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Munshi
PublisherLala Bhagvandas Jain
Publication Year1902
Total Pages97
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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