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________________ वानानन्दरत्नाकर। ॥दोहा॥ राक्षसोप विप पसे विद्याधर गुण धाम | या वर्णन संक्षेप से कहा मुनाथगम ॥ पलभता राक्षस नाही नर पवित्र जानो भाई । तिमका वर्णनसुतो मो श्रवणों कोआनंददाई ॥६॥ ॥ बानर वंशीन की उत्पत्ति। वानर शिन की भैस उत्पांच मई सो सुनो श्रवण | जिन शामन का ना माघार न कल्पित कहो वचन || टेक ॥ विजयाच दक्षिण घेणीमेघपुर तह खगपति शुभनाय । अनींद्र राजापुर श्रीकंठ मनोहरा कन्पा धाम ।। नहीं पत्नपुर ना पुष्पोत्तर पोचर नामुन अभिराम ! कन्या ताके एक पनामा मनु मरपति की माग ॥ . ॥चौपाई॥ मनोहरा पुप्पातर राय । निज मुतको गांची उमगाय ।। किंठ कन्या के भाय । दई न ताको मने कराय ।। दोहा। धवल कीर्ति लंका धनी रातस वंशी भूप । म्याही ताहि मनोहरा लखि के अधिक अनूप ॥ पुष्पाचर खग श्रवण मुनत यह बहुत उदासी मानी मन । निन शासन का लही आधार न कल्पित कहाँ वचन ॥ १ ॥ एक दिना श्रीकंठ वन्दना मुमेरु की कर आते घर। पद्माभा का राग मुन मोहितहो सो लीनी हर ॥ मुन कुटुम्ब जन तभी पुकारे पुप्पोत्तर को दई खवर | शोषित होके तभी खग चढा सेनले ता ऊपर ॥
SR No.010697
Book TitleGyanand Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Munshi
PublisherLala Bhagvandas Jain
Publication Year1902
Total Pages97
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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