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________________ R- me ९२ ___ ज्ञानानन्द रत्नाकर। कारे॥१॥ जिन बच मेघ झरत अति शीतल, सम्यक बहति बयारे ॥२॥ भवि चातक हित जान ग्रहणकर, नाशे कष्ट तृषारे ॥३॥ नाथूराम जिन भक्त कठिन है अवसर वारंवारे॥४॥. . . __ . . गजलं॥१॥ . मिले दीदार पारसको, आरजुई हमारी है ॥ (टेक) तआला हूतू दुनियामें, वयांकरे खल्क सारी है ॥ कल दुश्मन किये आठो, राह जन्नत निकारी है ॥१॥ मोह जालिमने खिल्कतके गले जंजीर डारी है। परेशां हैं सभीयासे.ई बद मूजी शिकारी है ॥२॥ मिहर बंदा पै अब कीजै, पेश अर्जी गुजारी है ॥ मेरे दुश्मन फना कीजै, मुझे तकलीफ भारी है ॥३ नफर नथमलकी ऐकादिर गुजारिश वारवारी है ॥ करो हम्बार फिदवीको मिहरवानी तुम्हारी है ॥४॥ ३ पद ॥१॥ वृषभ पति जन्मे जग हितकारी ॥ टेक ।। गर्भवाससे मास प्रथम छः हरिने अवधि विचारी॥ धनद नग्र रचि मणि बरसाये, पन्द्रह मास-त्रिवारी ॥१॥ षट कुमारिका गर्भ सोधना करी प्रीति अति धारी॥ सुरपति सुरयुत गर्भ महोत्सव कीना आनंदकारी ॥२॥ जन्म समय हरि सुर गिरिजाके न्हौन कराया भारी ॥ क्षीरोदधि जल सहस्र अठोत्तर घट भर धाराडारी ॥३॥
SR No.010696
Book TitleGyanand Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Munshi
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1895
Total Pages105
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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