SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञानानन्द रत्नाकर। श्रीसुपारसनाथ स्तुति ॥ ७॥ तुम्हारे चरण कमलका दास ॥ (टेक) । सत्य सुपारस तुम ही जगमे । पूरत जनकी आस ॥ सुवर्ण रूप होतसो क्षणमें । जो आवत तुम पास ॥ ३॥ कर्म कुधातु पनो पद परसे। होत क्षणकमें नाश ॥ स्ववरण शुद्ध चिदातम अपना । करता रूप प्रकाश ॥२॥ पारस कृत सुवरणको हरके । चोरादिक दें त्रास॥ . तुम पद परशे स्ववर्ण प्रगटे । हत्ता कोई न तास ॥३॥ शुद्ध सुपारस नाम तुम्हारा । सुनते होय हुलास ॥ नाथूराम जिन भक्त जग्ततजि । चाहत तुम तट वास ४॥ · श्रीचंद्रप्रभुनाथ स्तुति ॥ ८॥ चंद्र प्रभु राजत त्रिभुवन चंद्र ॥ (टेक) चंद्र कलंकी तुम निकलंकी । दाता जगदानंद ॥ योति रहित शशि होत दिवसमें । तुम धुति सदाअमंद॥ मेघ पटल ग्रह राहु आदिसे । चंद्रकला हो बंद ॥ तुम मुखचंद्र प्रकाशित अहो निशि । त्रिभुवनको सुखकंद होत उद्योत चंद्र जब निशिम । मुद्रित हो अरिवद ॥ तुम मुख चंद्र देख भावि पंकज । विगशित लहि आनंद३॥ चतुरनकाय देवनर खगपति । पूजत चरण शतेंद्र ॥ नाथूराम जिन भक्त तुम्हारी । चाहत सेव जिनेंद्र ॥ ४॥ श्रीपुष्पदंत स्तुति ॥९॥ तुम्हारा ध्यान धरत नित संत ॥ (टेक)
SR No.010696
Book TitleGyanand Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Munshi
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1895
Total Pages105
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy