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________________ ४२ ज्ञानानन्द रत्नाकर। न गृह कर जिन प्रतिमा तहां विस्ताराधरें तहां क्षेत्रपालला द्वार जी॥ दोहा। तेल सिंदूर चढ़ाय के करें अंग सब लाल ॥ दरवाजे में घुसत ही, तिनको नावत भाल॥ पीछे जिन दर्शन दर्शाया। जिन्हें खल कुगुरुन बिहकाया जी॥३०॥रण श्रृंगार कथासुन के अति अंग अंग हपाय तत्त्व कथनी सुन अति अलसाय जी। कोई कलह बतावें कोई सोवें झोके खायें । कोई हो उदास घर उठ जायजी ।। दोहा-अन्य मती सहा क्रिया, करते तहां अनेक॥ तर्पणादि कहां तक कहूं, करते नाहिं विवेक ॥ पंथ भेषिन का मन भाया । जिन्हें खल कुगुरुन विहकाया जी॥११॥धन बल कुल आरोग्य भोग। इनके मिलने की आस ॥ तथा चाहें घरी का नाशजी। इन फल माहि लुभाने अति ही ॥ नाहक सहते त्रास । करें बेला तेला उपवास जी॥ दोहा। देव धर्म गुरु परखिये, नाथूराम जिन भक्त ॥ तजि विकल्प निजरूप में, हूजे अब आसक्त ॥ समय पंचम जगमें छाया। जिन्हें खल कुगुरुन बिहकायाजी ___ कुटिल ढोंगी श्रावककी लावनी ॥ २४ ॥ त्रेपन क्रिया सुयुक्त सरावग को तुमसागुण मूल ॥ . जिन्होंके वचन वत्रके शूलजी॥
SR No.010696
Book TitleGyanand Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Munshi
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1895
Total Pages105
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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