SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ? '१६ ज्ञानानन्द रत्नाकर 1 तिन का दर्शन तथा स्मर्ण किये अघ भाजत हैं || ३ || ढाई द्वीप में एक सौ साठ विदेह तिन में तीर्थंकर बीस || आठ २ में एक जिनवर राजे त्रिभुवनके ईश || कोड़ि पूर्व सब आयु धनुष पांचसौ काय त्रय छत्तर शीश दोनों ओरी अमर ढोरते चमर बत्तिस बत्तीस ॥ नाथूराम जिन भक्त जहां जिनवचन मेघ सम गाजत हैं ॥ तिन का वर्णन तथा स्मर्ण किये अघ भाजत हैं ॥ ४ ॥ चौसडकी लावनी ॥ १२ ॥ चौरासी लाख योनि में चौसड़ खेलत काल अनादि गया || चारों गति के चार पर से न अभी तक पार भया ॥ (टेक) देव धर्म गुरु रत्नत्रय तीनों काने बिन पहिचाने ॥ आराधना चारों नहीं हिरदे में धरे चारों काने ॥ पंच महाव्रत पंजड़ी बिन नहीं पाया पंचम निज थाने | पट मत छकड़ी के बोध बिन रहा अभी तक अज्ञाने ॥ पंच दुरी सत्ता के बोधबिन सत्ता का ना सत्त छया ॥ चारों गति के चार गति से न अभी तक पार भया ॥ १ ॥ पांच तीन अथवा छग्दो अट्ठाके विना जाने भाई ॥ बसु कर्म न नाशे नहीं बसु गुण विभूति अपनी पाई ॥ पाँच चार अथवा छ तीन जाने विन नव निधि बिनझाई || नव ग्रीवक जाके चतुर में फिर भ्रमण किया आई || छ चारि दशविधि धर्म नजाना दशविधिपरिग्रह भार ठया ||
SR No.010696
Book TitleGyanand Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Munshi
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1895
Total Pages105
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy