SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - उपदेशाधिकार। तजिवे गहिवेको वन, विद्या पढ़ते ज्ञान। हैमरधा जब आचग्न, इंद्र नमै तब आन ॥३५॥ धनत कलमप ना कटे. काट विद्या ज्ञान । ज्ञान विना धन क्लेगकर, नान एक मुखखान ॥३६॥ जो सुख चाहै जीवको, तो बुधजन या मान । च्या न्यो मर पच लीजिये, गुस्त साचा ज्ञान ॥३७॥ सींग पूंछ विन बैल है, मानुप बिना विवेक । भस्य अभख समझे नहीं, भगिनी भामिनी एक ॥३८॥ मित्रता और संगति। जालौं तू संसारमें, तीली मीत रसाय । सला लिय विन मित्रकी, कारज वीगर जाय ॥३९॥ नीति अनीति गर्न नहीं, दारिद संपतिमाहि । भीत सला ले चाल है. तिनका अपजस नाहि ॥४०॥ मीत अनीत बचायक, हे विसन छुड़ाइ । मीत नहीं वह दृष्ट है, जो दे विसन लगाइ ॥४१॥ धन सम कुल सम धरम सम, सम वय मीत बनाय। नासा अपनी गोप कहि, लीजें भरम मिटाय ॥४२॥ औरनतें कहिये नहीं, मनकी पीडा कोइ। मिले मीत परकासिये, तब वह देव खोइ ॥४३॥ खोटेसी बात किय, खोटा जानै लोय । १ पाप । २ भक्ष्य-खाने योग्य, अभक्ष्य नहीं खाने योग्य । ३ सलाह।
SR No.010694
Book TitleBudhjan Satsai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages91
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy