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________________ (२७) ३ कुदेव, कुगुरु, कुधर्म परिहरु । ३ ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदरूं । ३. ज्ञान विराधना, दर्शन विराधना, चारित्र विराधना परिहीं। ३ मनगुप्ति, वचनगुप्ति, कायगुप्ति आदरुं ! ३ मनदंड, वचनदंड, कायदंड परिहरु । (ये अठारह बोल, बाएं हाथकी हथेलीमें कहने चाहिये) यहां तकके पच्चीस बोल मुहपत्ति पढिलेनेके हैं। न.चेके पच्चीस बोल शरीर पढिलेनेके हैं :३ हास्य, रति, अाति परिहरुं ( बाई भुजा पढिलेते ) ३ भयं, शोक, दुगंछा परिहरु ( दाई मुजा पढिलेते ) ३ कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या परिहरु (ललाटपर) ३ रिद्धिगारव, रसगारव, सातागारव परिहरु (मुखपर) ३ मायाशल्य, नियाणाशल्य, मिच्छादसणशल्य परिहरु ___ (हृदयपर) २ क्रोध, मान परिहरू (बाईमुनाके पीछे)। २ माया, लोभ परिहरूं (दाहिनी भुजाके पीछे)। ३ पृथ्वीकाय, अपकाय, तेऊकायकी रक्षा करूं (चर्वलेसे. बाए पैर पर)। वायुकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकायकी यतना करूं(चर्वलेसे दाहिने पैर पर) इन वोलोंको किस प्रकारसे कहने चाहिये, इसकी विशेषः समझ किसी जानकारसे मालूम करना उचित है।
SR No.010693
Book TitleChaityavandan Samayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Jain Pustak Pracharak Mandal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1918
Total Pages35
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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