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________________ लघुनीत ९ उचार (दस्त करना ) याने बड़ी नीत १० जुवटे (जुवा खेलना' यानी तास चोपट मतरंज कोडीये पासे वगैरे। हथियार लकड़ी बूट जोडी आदि वे अदबी की चीजें तथा गनकथा, देशक्या श्री क्था, भोजन कथा अर्थात् पापयुक्त वार्तालाप आदि जिनमंदिरमें अवश्य त्यागना चाहिये । ८४ आसातना दूसरे ग्रंथोंसे जान लेनी ।। गुरु महाराजको वन्दन करनेकी विधि ॥ . मन्दिर में दर्शन करने के बाद, यदि पंचमहावतोंके धारन करनेवाले, और पंच समिति तिन गुप्ति दशविधयति धर्मके पालन करनेवाले ऐसे निग्रन्थ निस्पृह गुरुका योग हो तो, उनके चरणकमलों में वन्दना करने के लिए नाना, जिसकी विधि नाचे लिखे अनुसार है। ' - प्रथम दो खमासमण देकर खड़े हो इच्छकारी "सुहराइ०” का पाठ पढ़े। ॥ अथ सुगुरुको सुखसाता पूछना ॥ . इच्छाकारि सुहराइ सुहदेवम'. सुखनप, शर निरावाध, सुखसंयमयात्रा निर्वहते होजी ? स्वामी साता है जी ? आहार (भक्त) पानीका लाभ देना नी । __ अर्थ-इच्छापूर्वक हे गुरुजी ! आप सुखसे रात्रिमें, सुखसे दिनमें, सुखसे तपश्चर्यामें, शरीर सम्बंधी निरोगतामें, सुखसे संयम यात्रा धारण करते होजी ? स्वामी साता है जी? आहार पानीका • लाम देनाजी और फिर एक खमासमण देकर अमुहिमओमि पड़े। पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी के आप अनन्यतमः . ९ . . . द्वारा सम्पन्न माध्यात्मिक क्रान्ति में प्रापका अभूतपूर्व योगदान है। उनके मिशन की जयपुर से संचालित समस्त गतिविधियों आपकी सूझ-बूझ एवं सफल संचालन का ही सुपरिणाम हैं।
SR No.010693
Book TitleChaityavandan Samayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Jain Pustak Pracharak Mandal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1918
Total Pages35
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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