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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir गोम्मटसार। वत्तावत्तपमादे जो वसइ पमत्तसंजदो होदि । सयलगुणशीलकलिओ महबई चित्तलायरणो ॥ ३३॥ व्यक्ताव्यक्तप्रमादे यो वसति प्रमत्तसंयतो भवति । सकलगुणशीलकलितो महाव्रती चित्रलाचरणः ॥ ३३ ॥ अर्थ-जो महाव्रती सम्पूर्ण मूलगुण (२८) और शीलसे युक्त होता हुआ भी व्यक्त और अव्यक्त दोंनो प्रकारके प्रमादोंको करता है उस प्रमत्तसंयतका आचरण चित्रल होता है। प्रकरणमें प्राप्त प्रमादोंका वर्णन करते हैं। विकहा तहा कसाया इंदियणिद्दा तहेव पणयोय । चदु चदु पणमेगेगं होंति पमादा हु पण्णरस ॥ ३४ ॥ विकथा तथा कषाया इन्द्रियनिद्रास्तथैव प्रणयश्च । __ चतुःचतुःपञ्चैकैकं भवन्ति प्रमादाः खलु पञ्चदश ॥ ३४ ॥ अर्थ-चार विकथा ( स्त्रीकथा भक्तकथा राष्ट्रकथा अवनिपालकथा) चार कषाय ( क्रोध मान माया लोभ ) पांच इन्द्रिय ( स्पर्शन रसन घ्राण चक्षु और श्रोत्र) एक निद्रा और एक प्रणय ( स्नेह) ये पंद्रह प्रमादोंकी संख्या है। अब प्रमादोंका विशेष वर्णन करनेके लिये उनके पांच प्रकारोंका वर्णन करते हैं। संखा तह पत्थारो परियट्टण णट्ट तह समुद्दिढें । एदे पंच पयारा पमदसमुक्त्तिणे णेया ॥ ३५ ॥ __ संख्या तथा प्रस्तारः परिवर्तनं नष्टं तथा समुद्दिष्टम् । एते पञ्च प्रकाराः प्रमादसमुत्कीर्तने ज्ञेयाः ॥ ३५ ॥ अर्थ-प्रमादके विशेष वर्णनके विषयमें इन पांच प्रकारोंको समझना चाहिये । सं. ख्या, प्रस्तार, परिवर्तन, नष्ट, और समुद्दिष्ट । आलापोंके भेदों की गणनाको संख्या कहते हैं। संख्याके रखने या निकालने के क्रमको प्रस्तार, और एक भेदसे दूसरे भेदपर पहुंचनेके क्रमको परिवर्तन, संख्याके द्वारा भेदके निकालनेको नष्ट, और भेदको रखकर संख्याके निकालनेको समुद्दिष्ट कहते हैं । __ संख्याकी उत्पत्तिका क्रम बताते हैं । सवेपि पुखभंगा उवरिमभंगेसु एकमेक्कसु। मेलंतित्ति य कमसो गुणिदे उप्पजदे संखा ॥ ३६ ॥ १-२ जिसका स्वयं अनुभव हो उसको व्यक्त और उससे विपरीतको अव्यक्त प्रमाद कहते हैं। ३ चितकबरा अर्थात् जिसमें किसी दूसरे रंगका भी सद्भाव हो । छट्टे गुणस्थानवर्ती मुनिका आचरण कषाययुक्त होनेसे चित्रल कहाजाता है । For Private And Personal
SR No.010692
Book TitleGommatsara Jivakand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages305
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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