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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir २२२ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । 1 भेदमें एक मिलानेसे अनन्ताणुवर्गणाका जघन्य भेद होता है । इसी तरह आगे भी समझना । इसी क्रमसे पुद्गलद्रव्य के बाईस भेद होते हैं; किन्तु एक अणुवर्गणा को मिलानेसे पुद्गलद्रव्य तेईस भेद होते हैं यह जिनेन्द्रदेव ने कहा है । प्रकारान्तरसे होनेवाले पुद्गलद्रव्यके छह भेदोंके दृष्टान्त दिखाते हैं । पुढवी जलं च छाया चउरिंदियविषयकम्मपरमाणू । छविभेयं भणियं पोग्गलदवं जिणवरेहिं ॥ ६०१ ॥ पृथ्वी जलं च छाया चतुरिन्द्रियविषयकर्मपरमाणवः । षड्रिधभेदं भणितं पुद्गलद्रव्यं जिनवरैः ॥ ६०१ ॥ अर्थ – गुलद्रव्यको जिनेन्द्र देवने छह प्रकारका बताया है । जैसे १ पृथ्वी २ जल ३ ४ छाया, नेत्रको छोड़कर शेष चार इन्द्रियोंका विषय, ५ कर्म, ६ परमाणु । इन छह भेदोंकी क्या २ संज्ञा है यह बताते हैं । बादरबादर बादर बादरसुहमं च सुहमथूलं च । सुहमं च सुहमसुहमं धरादियं होदि छन्भेयं ॥ ६०२ ॥ बादरबादरं बादरं वादरसूक्ष्मं च सूक्ष्मस्थूलं च । सूक्ष्मं च सूक्ष्मसूक्ष्मं धरादिकं भवति षड्भेदम् ॥ ६०२ ॥ अर्थ - बादरबादर, बादर, बादरसूक्ष्म, सूक्ष्मबादर, सूक्ष्म, सूक्ष्मसूक्ष्म, इस तरह पुनलद्रव्य के छह भेद हैं, जैसे उक्त पृथ्वी आदि । भावार्थ — जिसका छेदन भेदन अन्यत्र प्रापण हो सके उस स्कन्धको बादरबादर कहते हैं, जैसे पृथ्वी काष्ठ पाषाण आदि । जिसका छेदन भेदन न हो सके किन्तु अन्यत्र प्रापण हो सके उस स्कन्धको बादर कहते हैं। जैसे जल तैल आदि । जिसका छेदन भेदन अन्यत्र प्रापण कुछ भी न हो सके ऐसे नेत्रसे देखने योग्य स्कन्धको बादरसूक्ष्म कहते हैं । जैसे छाया, आतप, चांदनी आदि । नेत्रको छोड़कर शेष चार इन्द्रियोंके विषयभूत पुद्गलस्कन्धको सूक्ष्मस्थूल कहते हैं जैसे शब्द गन्ध रस आदि । जिसका किसी इन्द्रियके द्वारा ग्रहण न हो सके उस पुद्गलस्कन्धको सूक्ष्म कहते हैं जैसे कर्म । जो स्कन्धरूप नहीं हैं ऐसे अविभागी पुद्गल परमाणुओंको सूक्ष्मसूक्ष्म कहते हैं । खधं सयलसमत्थं तस्स य अद्धं भांति देसोत्ति । अद्धद्धं च पदेसो अविभागी चेव परमाणू ॥ ६०३ ॥ स्कन्धं सकलसमर्थं तस्य चार्धं भणन्ति देशमिति । अर्द्धार्द्ध च प्रदेशमविभागिनं चैव परमाणुम् || ६०३ ॥ For Private And Personal
SR No.010692
Book TitleGommatsara Jivakand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages305
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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