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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir गोम्मटसारः। २१९ अपने स्थानसे कभी चलायमान नहीं होते तथा एक स्थान पर ही रहते हुए भी इनके प्रदेश कभी सकम्प नहीं होते। किन्तु संसारी जीवोंके प्रदेश तीन प्रकारके होते हैं। चल भी होते हैं, अचल भी होते हैं, तथा चलाचल भी होते हैं । विग्रहगतिवाले जीवोंके प्रदेश चल ही होते हैं । अयोगकेवलियों के प्रदेश अचल ही होते हैं । और शेष जीवोंके प्रदेश चलाचल होते हैं। पोग्गलदवम्हि अणू संखेजादी हवंति चलिदा हु। चरिममहक्खंधम्मि य चलाचला होंति हु पदेसा ॥ ५९२ ॥ पुद्गलद्रव्येऽणवः संख्यातादयो भवंति चलिता हि । चरममहास्कन्धे च चलाचला भवन्ति हि प्रदेशाः ॥ ५९२ ॥ अर्थ-पुद्गलद्रव्यमें परमाणु तथा संख्यात असंख्यात आदि अणुके जितने स्कन्ध हैं वे सभी चल हैं, किन्तु एक अन्तिम महास्कन्ध चलाचल है; क्योंकि उसमें कोई परमाणु चल हैं और कोई परमाणु अचल हैं । परमाणुसे लेकर महास्कन्ध पर्यन्त पुद्गलद्रव्यके तेईस भेदोंको दो गाथाओंमें गिनाते हैं। अणुसंखासंखेजाणता य अगेजगेहिं अंतरिया। आहारतेजभासामणकम्मइया धुवक्खंधा ॥ ५९३ ॥ सांतरणिरंतरेण य सुण्णा पत्तेयदेहधुवसुण्णा । बादरणिगोदसुण्णा सुहुमणिगोदा णभो महक्खंधा ॥ ५९४ ॥ अणुसंख्यासंख्यातानन्ताश्च अग्राह्यकाभिरन्तरिताः । आहारतेजोभाषामनःकार्मणा ध्रुवस्कन्धाः ॥ ५९३ ॥ सान्तरनिरन्तरया च शून्या प्रत्येकदेहध्रुवशून्याः । बादरनिगोदशून्याः सूक्ष्मनिगोदा नभो महास्कन्धाः ॥ ५९४ ।। अर्थ-पुद्गलद्रव्यके तेईस भेद हैं । अणुवर्गणा, संख्याताणुवर्गणा, असंख्याताणुवर्गणा, अनन्ताणुवर्गणा, आहारवर्गणा, अग्राह्यवर्गणा, तैजसवर्गणा, अग्राह्यवर्गणा, भाषावर्गणा, अग्राह्यवर्गणा, मनोवर्गणा, अग्राह्यवर्गणा, कार्मणवर्गणा, ध्रुववर्गणा, सांतरनिरंतरवर्गणा, शून्यवर्गणा, प्रत्येकशरीरवर्गणा, ध्रुवशून्यवर्गणा, बादरनिगोदवर्गणा, शून्यवर्गणा, सूक्ष्मनिगोदवर्गणा, नभोवर्गणा, महास्कन्धवर्गणा । - इन वर्गणाओंके जघन्य मध्यम उत्कृष्ट भेद तथा इनका अल्पबहुत्व बताते हैं । परमाणुवग्गणम्मि ण अवरुक्कस्सं च सेसगे अस्थि । गेज्झमहक्खंधाणं वरमहियं सेसगं गुणियं ॥ ५९५ ॥ For Private And Personal
SR No.010692
Book TitleGommatsara Jivakand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages305
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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