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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir गोम्मटसारः। १८७ अर्थ-पद्मलेश्याके उत्कृष्ट अंशोंके साथ मरे हुए जीव नियमसे सहस्रार वर्गको प्राप्त होते हैं । और पद्म लेश्याके जघन्य अंशोंके साथ मरे हुए जीव सनत्कुमार और माहेन्द्र वर्गको प्राप्त होते हैं। मज्झिमअंशेण मुदा तम्मज्झं जांति तेउजेटमुदा । साणक्कुमारमाहिदंतिमचक्किंदसेढिम्मि ॥ ५२१॥ मध्यमांशेन मृता तन्मध्यं यान्ति तेजोज्येष्ठमृताः । सनत्कुमारमाहेन्द्रान्तिमचक्रेन्द्रश्रेण्याम् ॥ ५२१ ॥ अर्थ---पद्मलेश्याके मध्यम अंशोके साथ मरे हुए जीव सनत्कुमार माहेन्द्र वर्गके ऊपर और सहस्रार स्वर्गके नीचे २ के विमानोमें उत्पन्न होते हैं । पीतलेश्याके उत्कृष्ट अंशोके साथ मरे हुए जीव सनत्कुमार माहेन्द्र वर्गके अन्तिम पटलमें चक्रनामक इन्द्रकसम्बन्धी श्रेणीबद्ध विमानमें उत्पन्न होते हैं। अवरंसमुदा सोहम्मीसाणादिमउडम्मि सेढिम्मि । मज्झिमअंसेण मुदा विमलविमाणादिबलभद्दे ॥ ५२२ ॥ अवरांशमृताः सौधर्मैशानादिमतौँ श्रेण्याम् । मध्यमांशेन मृताः विमलविमानादिबलभद्रे ॥ ५२२ ॥ अर्थ-पीतलेश्याके जघन्य अंशोके साथ मरा हुआ जीव सौधर्म ईशान खर्गके ऋतु (जु)नामक इन्द्रक विमानमें अथवा श्रेणीबद्ध विमानमें उत्पन्न होता है। पीत लेश्याके मध्यम अंशोके साथ मरा हुआ जीव सौधर्म ईशान खर्गके दूसरे पटलके विमल नामक इन्द्रक विमानसे लेकर सनत्कुमार माहेन्द्र वर्गके द्विचरम पटलके (अन्तिम पटलसे पूर्वका पटल) बलभद्रनामक इन्द्रक विमानपर्यन्त उत्पन्न होता है। किण्हवरंसेण मुदा अवधिट्टाणम्मि अवरअंसमुदा। पंचमचरिमतिमिस्से मज्झे मज्झेण जायंते ॥ ५२३ ॥ कृष्णवरांशेन मृता अवधिस्थाने अवरांशमृताः। पञ्चमचरमतिमिश्रे मध्ये मध्येन जायन्ते ॥ ५२३ ॥ अर्थ-कृष्णलेश्याके उत्कृष्ट अंशोंके साथ मरे हुए जीव सातमी पृथ्वीके अवधिस्थान नामक इन्द्रक बिलमें उत्पन्न होते हैं । जघन्य अंशोंके साथ मरे हुए जीव पांचमी पृथ्वीके अन्तिम पटलके तिमिश्रनामक इन्द्रक बिलमें उत्पन्न होते हैं । कृष्णलेश्याके मध्यम अंशोंके साथ मरे हुए जीव दोनोंके ( सातमी पृथ्वीका अवधिस्थान नामक इन्द्रकबिल और पांचमी पृथ्वीके अन्तिम पटलसम्बन्धी तिमिश्र बिल) मध्यस्थानमें यथासम्भव उत्पन्न होते हैं। For Private And Personal
SR No.010692
Book TitleGommatsara Jivakand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages305
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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