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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्। - चिन्तितमचिन्तितं वा अर्ध चिन्तितमनेकभेदगतम् । : मनःपर्यय इत्युच्यते यज्जानाति तत्खलु नरलोके ॥ ४३७ ॥ अर्थ-जिसका भूत कालमें चिन्तवन किया हो, अथवा जिसका भविष्यत् कालमें चिन्तवन किया जायगा, अथवा वर्तमानमें जिसका आधा चिन्तवन किया है, इत्यादि अनेक भेदखरूप दूसरेके मनमें स्थित पदार्थ जिसके द्वारा जाना जाय उस ज्ञानको मनःपर्यय कहते हैं । यह मनःपर्यय ज्ञान मनुष्यक्षेत्रमें ही होता है, बाहर नहीं। मनःपर्ययके भेदोंको गिनाते हैं। मणपजवं च दुविहं उजुविउलमदित्ति उजुमदी तिविहा । उजुमणवयणे काए गदत्थविसयात्ति णियमेण ॥ ४३८॥ मनःपर्ययश्च द्विविधः ऋजुविपुलमतीति ऋजुमतिस्त्रिविधा । ऋजुमनोवचने काये गतार्थविषया इति नियमेन ॥ ४३८ ॥ अर्थ-सामान्यकी अपेक्षा मनःपर्यय एक प्रकारका है । और विशेष भेदोंकी अपेक्षा दो प्रकारका है। एक ऋजुमति दूसरा विपुलमति । ऋजुमतिके भी तीन भेद हैं। ऋजुमनोगतार्थविषयक, ऋजुवचनगतार्थविषक, ऋजुकायगतार्थविषयक । परकीयमनोगत होने पर भी जो सरलतया मन वचन कायके द्वारा किया गया हो ऐसे पदार्थको विषय करनेवाले ज्ञानको ऋजुमति कहते हैं । अतएव सरल मन वचन कायके द्वारा किये हुए पदार्थको विषय करकी अपेक्षा ऋजुमतिके पूर्वोक्त तीन भेद हैं। विउलमदीवि य छद्धा उजुगाणुजुवयणकायचित्तगयं । अत्थं जाणदि जम्हा सहत्थगया हु ताणत्था ॥ ४३९॥ विपुलमतिरपि च षोढा ऋजुगानृजुवचनकायचित्तगतम् । अर्थ जानाति यस्मात् शब्दार्थगता हि तेषामर्थाः ॥ ४३९ ॥ अर्थ-विपुलमतिके छह भेद हैं । ऋजु मन वचन कायगत पदार्थको विषय करनेकी अपेक्षा तीन भेद, और कुटिल मन वचन कायके द्वारा किये हुए परकीय मनोगत पदाथोंको विषय करनेकी अपेक्षा तीन भेद । ऋजुमति तथा विपुलमति मनःपर्ययके विषय शब्दगत तथा अर्थगत दोनो ही प्रकारके होते हैं । तियकालविसयरूविं चिंतितं वट्टमाणजीवेण । उजुमदिणाणं जाणदि भूदभविस्सं च विउलमदी ॥ ४४० ॥ त्रिकालविषयरूपि चिंतितं वर्तमानजीवेन। ऋजुमतिज्ञानं जानाति भूतभविष्यञ्च विपुलमतिः ॥ ४४० ॥ For Private And Personal
SR No.010692
Book TitleGommatsara Jivakand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages305
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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