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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । तिरिये अवरं ओघो तेजोयंते य होदि उक्कस्सं । मणुए ओघं देवे जहाकमं सुणह वोच्छामि ॥ ४२४ ॥ तिरश्चि अवरमोघः तेजोऽन्ते च भवति उत्कृष्टम् । मनुजे ओघः देवे यथाक्रमं शृणुत वक्ष्यामि ॥ ४२४ ॥ अर्थ-तिर्यञ्चोंके अवधि ज्ञान जघन्य देशावधिसे लेकर उत्कृष्टताकी अपेक्षा उस भेदपर्यन्त होता है कि जो देशावधिका भेद तैजस शरीरको विषय करता है। मनुष्य गतिमें अवधि ज्ञान जघन्य देशावधिसे लेकर उत्कृष्टतया सर्वावधिपर्यन्त होता है । देवगतिमें अवधि ज्ञानको यथाक्रमसे कहूंगा सो सुनो। प्रतिज्ञाके अनुसार देवगतिमें अवधिके क्षेत्रादिका वर्णन करते हैं । पणुवीसजोयणाई दिवसंतं च य कुमारभोम्माणं । संखेजगुणं खेत्तं बहुगं कालं तु जोइसिगे ॥ ४२५ ॥ · पञ्चविंशतियोजनानि दिवसान्तं च च कुमारभौमयोः । संख्यातगुणं क्षेत्रं बहुकः कालस्तु ज्योतिष्के ॥ ४२५ ॥ अर्थ-भवनवासी और व्यन्तरोंकी अवधिके क्षेत्रका जघन्य प्रमाण पच्चीस योजन और जघन्य काल कुछ कम एक दिन है । और ज्योतिषी देवोंकी अवधिका क्षेत्र इससे संख्यातगुणा है और काल इससे बहुत अधिक है । असुराणमसंखेजा कोडीओ सेसजोइसंताणं । संखातीदसहस्सा उक्कस्सोहीण विसओ दु॥४२६ ॥ असुराणामसंख्येयाः कोट्यः शेषज्योतिष्कान्तानाम् । ___संख्यातीतसहस्रा उत्कृष्टावधीनां विषयस्तु ॥ ४२६ ॥ अर्थ-असुरकुमारोंकी अवधिका उत्कृष्ट विषयक्षेत्र असंख्यात कोटि योजन है । शेष नौ प्रकारके भवनवासी तथा व्यन्तर और ज्योतिषी इनकी अवधिका उत्कृष्ट विषयक्षेत्र असंख्यात हजार योजन है। असुराणमसंखेजा वस्सा पुण सेसजोइसंताणं । तस्संखेज दिभागं कालेण य होदि णियमेण ॥ ४२७ ॥ असुराणामसंख्येयानि वर्षाणि पुनः शेषज्योतिष्कान्तानाम् । तत्संख्यातभागं कालेन च भवति नियमेन ॥ ४२७ ॥ अर्थ-असुरकुमारोंकी अवधिके उत्कृष्ट कालका प्रमाण असंख्यात वर्ष है । और शेष नौ प्रकारके भवनवासी व्यन्तर ज्योतिषी इनकी अवधिके उत्कृष्ट कालका प्रमाण असुरोंकी अवधिके उत्कृष्ट कालके प्रमाणसे नियमसे संख्यातमे भागमात्र है । For Private And Personal
SR No.010692
Book TitleGommatsara Jivakand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages305
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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