SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir गोम्मटसार। १३५ तत उपासकाध्ययने अन्तकृते अनुत्तरौपपाददशे । प्रश्नानां व्याकरणे विपाकसूत्रे च पदसंख्या ॥ ३५६ ॥ अर्थ-आचाराग, सूत्रकृताङ्ग, स्थानाङ्ग, समवायाङ्ग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, धर्मकथान, उपासकाध्ययनाज, अन्तःकृद्दशाङ्ग, अनुत्तरौपपादिकदशाङ्ग, प्रश्नव्याकरण, और विपाकसूत्र इन ग्यारह अङ्गोंके पदोंकी संख्या क्रमसे निम्नलिखत हैं । अट्ठारस छत्तीसं बादालं अडकडी अडचि छप्पण्णं । सत्तरि अट्ठावीसं चउदालं सोलससहस्सा ॥ ३५७ ॥ इगिद्गपंचेयारं तिवीसदुतिणउदिलक्ख तुरियादी। चुलसीदिलक्खमेया कोडी य विवागसूत्तम्हि ॥ ३५८ ॥ अष्टादश षट्त्रिंशत् द्वाचत्वारिंशत् अष्टकृतिः अष्टद्वि षट्पञ्चाशत् । सप्ततिः अष्टाविंशतिः चतुश्चत्वारिंशत् षोडशसहस्राणि ॥ ३५७ ॥ एकद्विपञ्चैकादशत्रयोविंशतिद्वित्रिनवतिलक्षं चतुर्थादिषु । चतुरशीतिलक्षमेका कोटिश्च विपाकसूत्रे ।। ३५८ ॥ अर्थ-आचाराङ्गमें अठारह हजार पद हैं, सूत्रकृताङ्गमें छत्तीस हजार, स्थानाङ्गमें वियालीस हजार, समवायाङ्गमें एक लाख चौंसठ हजार, व्याख्याप्रज्ञप्तिमें दो लाख अट्ठाईस हजार, धर्मकथाङ्गमें पांच लाख छप्पन हजार, उपासकाध्ययनाङ्गमें ग्यारह लाख सत्तर, अंतःकृद्दशाङ्गमें तेईस लाख अट्ठाई हजार, अनुत्तरौपपादिक दशाङ्गमें बानवे लाख चवालीस हजार, प्रश्नव्याकरण अङ्गमें तिरानवे लाख सोलह हजार पद हैं । तथा ग्यारहमे विपाकसूत्र अङ्गमें एक करोड़ चौरासी लाख पद हैं । सम्पूर्ण पदोंका जोड़ बताते हैं। वापणनरनोनानं एयारंगे जुदी हु वादम्हि । कनजतजमताननमं जनकनजयसीम वाहिरे वण्णा ॥ ३५९॥ . वापणनरनोनानं एकादशाङ्गे युतिर्हि वादे । कनजतजमताननमं जनकनजयसीम बाह्ये वर्णोः ॥ ३५९ ॥ अर्थ-पूर्वोक्त ग्यारह अङ्गोके पदोंका जोड़ चार करोड़ पन्द्रह लाख दो हजार (४१ ५०२०००) होता है । बारहमे दृष्टिवाद अङ्गमें सम्पूर्ण पद १०८६८५६००५ होते हैं। और अङ्गबाह्य अक्षरोंका प्रमाण आठ करोड़ एक लाख आठ हजार एक सौ पचहत्तर (८०१०८१७५ ) है । बारहमे अङ्गके भेद और उनके पदोंका प्रमाण बताते हैं । For Private And Personal
SR No.010692
Book TitleGommatsara Jivakand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages305
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy