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________________ वीरस्तुतिः। . . ३४ अतिशय (१) केश तथा दाढी मूछ के वाल वढते नहीं, या असुन्दर रीति से नहीं बढते । (२) शरीर नीरोग रहता है । (३) उनके शरीरका सविर तथा मांस दुग्धकी तरह सुन्दर और स्वच्छ होता है, आदेय होता है, घिनौना नहीं लगता। (४) मुखमें कमलकी सी सुगंधि रहती है, असत्य अथवा दुर्गध नहीं होती। (५) आहार और नीहारको चर्मचक्षुवाले नहीं देखते, क्योंकि ये क्रियाएँ गुप्त की जाती हैं। (६) आकाश गत छत्र रहता है, अर्थात् सिद्धों का स्मरण अमेद रूपसे करते रहते हैं। (७) आकाश गत चमर युग्म श्रुत, चरित्र रूप धर्म ऊंचा रहता है। (८) आकाश गत स्फटिकमय सिंहासन, उनका १३ वां गुणस्थान शोभित है। (९) पाटपीठिका सहित ध्वजरूप तीर्थकर नाम कर्मकी कीर्ति आकाशमें गूंजती रहती है। (१०) प्रभु अशोकमय छाया में रहते हैं, वहा जानेसे औरोंका शोक निवारण करते हैं। (११) मार्गमें चलते समय काटेकी तरह तीक्ष्ण और पैने हठवादी विनीत हो जाते हैं । (१२) ऋतु अर्थात् समय अनुकूल तथा धर्मकाल हो जाता है। (१३) १२ योजन तक शान्तिका वायु चलता है। (१४) ज्ञान धारा प्रवाहित होनेसे कर्म रजका अभाव हो जाता है । (१५) भगवान् के समवसरणमें समभावका साम्राज्य छा जाता है। (१६) शब्द, रूप, रस, गंध, स्पर्शमें अनुकूलता और प्रतिकूलता रूप प्रवृति. विकृति भाव जाता रहता है। (१७) निश्चय और व्यवहार नय रूपी चवर दुलते रहते हैं । (१८) प्रभा या अनन्तज्ञानप्रतिमारूप भामंडल पीठ आसन या आत्माकी शोभा युक्त है। (१९) उनकी मधुर भाषा एक योजन तक सुनाई पडती है । (२०) स्त्री, पुरुष, पशु, पक्षी उनकी साकेतिक अर्थ. मागधी भाषाको अपनी भाषामें समझते हैं । (२१) गर्व लेकर आनेवाले लोक प्रभुकी वाणीसे न्याय लेकर निरहंकार होजाते हैं। (२२) प्रभु जहा विचरते हैं वहासे १२५ योजन चारों ओर सात ईतियोंमेंसे कोईमी ईति (भय) नीं होती। (२३) मनुष्य और तिथंच आपसका जातीय द्विष भाव तथा वैर विरोध छोड़ देते हैं। (२४) जनता में किसी प्रकार का भय नहीं होता । (२५) मारि आदिक रोग नहीं होते। (२६) अतिवृष्टि नहीं होती। (२७) अनावृष्टि नहीं होती । (२८) दुर्भिक्ष नहीं होने पाता । (२९) स्वचक्र-अपने राजा या अशुभ कर्मोका उपद्रव नहीं होता। (३०) पर चक्र-पर राजा या पुद्गल प्रपंचका -
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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