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________________ संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभापान्तरसहिता २३ जो निर्लोभी है, अभिमानसे रहित है, सर्वथा पापको त्याग चुका है, राग, द्वेष और मोहसे मुक्त है, यह तीसरा लक्षण है। मार्गमें, जंगलमें, या किसीके घर में पर वस्तुको देख कर जिसका चोरी करनेको जी नहीं चाहता, चोरी करके परवस्तु नहीं लेता है। वह ब्राह्मणका चतुर्थ लक्षण हैं। जो मास, मदिरा, मधुका कभी सेवन नहीं करता है; गूलर, अंजीर भादि गले सडे कीडोंवाले फल नहीं खाता है, तथा रातको भोजन नहीं करता है, यह पांचवां लक्षण है। किसीने ब्राह्मण के १० प्रकार भी कहे हैं। । देव, द्विज, मुनि, राजा, वैश्य, शूद्र, विलाव, गधा, म्लेच्छ, चाण्डाल, ___ इन मेदोंसे ब्राह्मण १० प्रकार के होते हैं। देव जो एक वक्त भोजन करता है, मास, मदिरा नहीं खाता पीता, तत्व ज्ञानके पारको पहुँच गया है, वह देव ब्राह्मण है। द्विज महाव्रती-नियमयुक्त-संयम पालक इन्द्रियविजेता-समतोलन वृत्ति वाला, आत्मा और मनका विजेता-क्षमा और सहिष्णु ब्राह्मण द्विज कहलाता है। मुनि जो रूखा, सूखा खाकर सन्तोष कर लेता है, दिन में भोजन करता है, सदैव वनमें रहता है, दिन, रात आत्म-ध्यान में लगा रहता है। योगाभ्यासके साधनमें संलग्न है, वह मुनि-ब्राह्मण है। नृप' जो हाथी घोडोंपर चढ़नेकी इच्छा रखता है, समर भूमि में जाकर युद्ध करता है, अपने देशको दासत्व की शृंखला से मुक्त करके खतन्त्रता दिलाता है। जिसे अन्यायका नाश कॅस्ते दयान आती हो, न्यायसे शासन चलाता हो, साम्यवादकी स्थितिपालकतामें शूर वीर हो, जिसमें कायरता का नाम तक नहीं है । वह ब्राह्मण राजाके समान होता है। '
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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