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________________ संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता २१ "जो पाच प्रकारके आचारोंका खय समाचरण करता है, अध्यात्मज्ञानका प्रकाशक है, चरित्रको प्रगटमें पवित्र दृष्टिसे भावके रूपमे भर देता है, वही भाचार्य होता है।" आचार्य के छत्तीस गुण पाच इन्द्रियोंको वश करते हैं, नववाडविशुद्ध ब्रह्मचर्यका पालन करते हैं, क्रोध, मान, माया, लोभको दूर करते हैं, पाच महाव्रतोंका पालन करते हैं, पाच आचारोंका समाचरण करते हैं, पाच समिति, तीनगुप्ति इन आठ प्रवचनोंको धारण करतेहैं, ये छत्तिस-गुण उत्पन्न होनेपर आचार्यकी योग्यता आ सकती है अन्यथा नहीं। आचार्य को चतुर गोपालं की उपमा चतुर ग्वाल सब पशुओंको अपनी विचारदृष्टिमें रखता है । उन्हें किसीके खेतमें नहीं घुसने देता। इसीप्रकार आचार्यभी अपने संघको अशान्ति, कुसम्प, कषाय, रूढिवाद और वैषम्यकी ओर नहीं जाने देता, समाजमें क्लेश होते ही आचार्य तुरन्त मिटा देते हैं । या भव्यात्माओंके जन्म जन्मान्तरोंके क्लेश मिटा देते हैं। उन्हें सन्मार्ग-सम्यग्दर्शनका राह सुझा देते हैं, युक्त, अयुक्त, ससार-मोक्ष, हित-अहित, धर्म-अधर्मका रहस्य भिन्न भिन्न करके समझा देनेका उपकार प्रस्तुत करते हैं। उन्हें नमस्कार करने का प्रयोजन आचार विषयक उपदेश उन्हीं से प्राप्त होता है, इसलिए तीसरे पदमें उनकोभी नमस्कार किया है, क्योंकि उन्होंने चरित्रोपदेशकताद्वारा हम पर खूव प्रभाव डाला है, हम उन्हें उपकारकी दृष्टि से निरहंकार होकर नमस्कार करते हैं और द्वादशागी-शास्त्र वाणीके पूर्णपाठी तथा औरोंको पढानेका कार्य भी इन्हींके हाथ है। आचार्य की विशेषता- . ,"ज्ञान, दर्शन, चरित्र, तप रूप गुप्त मन्त्रकी उत्तम शैली से ये ही व्याख्या करते हैं।
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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