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________________ संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिना ११ श्रमणः । इति "शब्दार्थचिन्तामणिः" श्राम्यति .परंदुःखं जाना तीत्यपि ।' च पुनर्नाह्मणाः ब्रह्मचर्याद्यनुष्ठाननिरताः । "द्विजात्य. अजन्म, भूदेववाडवाः । विप्रश्च ब्राह्मण" इत्यमरः । ब्रह्म परमात्मानं अनुत्तरोपपातिकः-इस सूत्रमें अनुत्तरोपपातिकोंके नगर, उद्यान, वनखंड, राजा, मातापिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, इत्यादिकका वर्णन है, और ऐहिक तथा पारलौकिक ऋद्धिविशेष, भोगपरित्याग, प्रव्रज्याग्रहण, श्रुतपरिग्रह, तप, उपधान, पाय, प्रतिज्ञा, सलेखना, भक्तपानप्रत्याख्यान, पादपोपगमन, श्रेष्ठकुलमें पुनर्जन्म, बोधिलाभ, अन्तक्रिया, इत्यादि विषयोंका वर्णन है। xx नवम ( अनुत्तरोपपातिक) अगमें एक श्रुतस्कन्ध, दश-अध्याय, तीन वर्ग, दश उद्देशनकाल, दशसमुद्देशनकाल, संख्यातलाख पद-अर्थात् ४६०८००० पद हैं। __ प्रश्नव्याकरण-पण्हवागरणेसु अठुत्तर अपसिणसयं, अठूत्तरं पसिणापसिणसयं, विजाइसया, नागसुवण्णे हिं सद्धिं दिव्वा सवाया आघविनंति, विम्हयकराणं अइसयमइ अकालदमसमतित्थकरुत्तमस्स ठिइकरणकारणाणं, दुरहिगमदुरवगाहस्स, सव्वसव्वणुसम्मअस्स, अवुहजणवोहकरस्स, पच्चक्खपच्चयकराणं, पाहाणं, विविहगुणमहत्था, जिणवरप्पणीआ आघविजति, + ++ + दसमे अगे एगे सुअक्खधे, पणयालीस उद्देसणकाला, पणयालीसं समुद्देसणकाला, सक्खेन्जाणि पयसहस्साणि । प्रश्वव्याकरण-इस सूत्र में एकसो आठ प्रश्न, १०८ अप्रश्न, १०८ प्रश्नाप्रश्न, विद्याओं का अतिशय, और नागकुमार तथा सुवर्णकुमारके साथ होने वाले दिव्य सवाद का वर्णन है। xx.x दशम (प्रश्नव्याकरण) अगमें, एक श्रुतस्कन्ध, ४५ उद्देशनकालें, ४५ समुद्देशनकाल, और सख्यात लाख पद मर्थात् ९२१६००० पद संख्या है। . . . विपाकश्रुत-विवागसुए णं सुकड-दुकडा णं कम्माणं फलविवागे आपविजंति, से समासओ, दुविहे पन्नते तजहा, दुहविवागे सुविधागे चेव, तत्यणं दस दुहविवागाणि, दस सुहविवागाणि से कि तं दुहविवागाणि ? दुहविवागे सु ण दुहविवागाणं नगराई, उज्जाणाई, वणखंडा, रायाणो; अम्मापियरो, समोसरणाइ, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, नगरगमणाई, ससारपवंधे, दुइपरंप
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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