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________________ संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता ९ संसारोत्तारणसमर्थः केन प्रतिपादितः । इत्येतद्बहवो मामिति भावः । ते के इत्याकांक्षायामाह श्रमणाः-साधवो निम्रन्थादयः। "तपखी । उपासकदशांग:-उवासगदसासु णं उवासगाणं नगराई, उबाणाई, चणखंडा, रायाणो, अम्मापियरो, समोसरणाइं, धम्मायरियाई, धम्मकहाओ, इहलोम, परलोइभइविविसेसा, उवासयाणं, सीलव्वय वेरमणगुणपञ्चक्खाण, पोसहोववासपडिवजिआओ, सुअपरिग्गहा, तवोवहाणाई, पडिमाओ, उवसग्गा, संलेहणा, भत्तपश्चक्खाणाई, पाओवगमणाइ, देवलोगगमणाई,सुकुलपश्चाया, पुणो बोहिलाभो, अतकिरिमो, माघविजंति, xxxxx सत्तमें अगे एगे मुअक्खंधे, दशमज्झयणा, दशउद्देशणकाला, दश समुद्देशणकाला, संखेजाई पयसहस्साई। उपासकदशांग:-इसमें उपासकोंके (श्रावकोंके ) नगर, उद्यान, वनखंड, राजा, मातापिता, समवसरण, धर्माचार्य, इसलोक और परलोककी दिविशेषका तथा श्रावकोंका शीलवत, विरमण, गुणव्रत, प्रत्याख्यान, पौषघोपवास, श्रुतपरिप्रह, तप, उपधान, प्रतिमा, उपसर्ग, संलेखना, भक्तप्रत्याख्यान, पादपोपगमन, देवलोकगमन, श्रेष्ठकूलजन्म, बोधिलाम और अन्तक्रियातकका वर्णन है x x सातवें उपासकदशागमें एक श्रुतस्कन्ध, दश मध्ययन, दश उद्देशनकाल, दश समुद्देशनकाल, और सख्यातलाखपद भर्यात् ११५२००० पदोकी सख्या है। . अन्तकृदशांग:-अंतगडदसासु गं अतगडा णं नगराई, उज्जाण, वणखंड, राया, अम्मापिय, समोसरण, धम्मायरिय, धम्मकहा, इहलोइम, परलोइमा, इडिविसेसा, भोगपरिचाया, पवजामो, सुअपरिग्गहा, तवोवहागाई, पडिमाओ, बहुविहाओ, खमा, भन्नवं, महवं, सोअ च सबसहि, सत्तरस्सविहोसजमो, उत्तमं च वंमं, अकिंचणया, तवो, किरियाओ, समिइगुः तिमो चेव, तह अप्पमायजोगो, समाय ज्ञाणेण य, उत्तमाणं दोहंपि, लक्खगाई, पत्ताणय सजम, जिमपरिसहाणं, चविहकम्मक्खवियम्मि, जह केवलस्स मो, परियामओ जत्तिमो य जह पालिओ मुणिहि, पावोवगओ जहिं, जतियानि मत्ताणि, छेमहत्ता, अतगडो मुणिवरो, तमरयोपविमुक्को, मुक्खसुहमणंतरं, च पत्ता ए ए अमेय एवमाइत्थ वित्वरेण परवेद, xxxxx भठमे मंगे
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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