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________________ संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता २८५६ आयंबिल उनत्तीस उदार ॥ ६ ॥ नित भोजन वीरजीएं नहीं कयो, न लियो चौथो आहार। थोडो तप बेलो कियो, सगलो तप चौविहार ॥ ७॥ मनुष्य पशु देवे जे दिया, सह्या परिषह ते आप, दोय घडी उपरांत नींद नवी लही, षट् दोय तेरे पाख ॥ ८॥ वीरजी कीधा तीनसे पारणा, अने वली उनपंचास, इण बले खामी केवल पामियो, विचस्या देश मंझार ॥९॥ वारा परिषद नर नारी सामले, वीर तणो समास, शूरवीरोए तप, कियो, षद् ऋतु मन हुलास ॥१०॥ गणधर ग्यारा जाणिए, चवदा सहस अणगार, सहस्र छतीस वीरजी रे साध्वियां, ते प्रण सुखकार ॥ ११॥ लाख श्रावक पडिमाघरें, ऊपर उनसठ हजार, तीन लाख तेहनी श्राविका, अरुपुनी सहस अठार ॥ १२ ॥ धन्य त्रिशलादेवी मातने, धन्य सिद्धार्थ राय, ज्ञातनन्दन धन्य जन्मियां, नाम लिया जाय पाप ॥ १३ ॥ गौतम आदिक सातसो केवली, अजियां चउदासौ सार, निजकर दीक्षित एटला पहुचा मुक्ति मंझार ॥ १४ ॥ (कलश) इम वीर जिनवर सकल सुखकर, एवा दुकर तपकरी । संयम पाली कर्म गाली खामी शिवरमणी वरी । सेवक यूं जंपे वीर जिनवर ! चरण सेऊ तुम तणां । संसार सागर पडत राखो, टालो खामिन् ! दुखमनां ॥ १५ ॥ (दीवाली) पूर्व दिशामें हुई. पावापुरी, धन्य धान्य ऋद्धि समृद्धिसुं भरी, हस्तीपाल बसे तिहा भूपाली, वीर मुक्ति विराजे दिन दिवाली ॥ गौतमने सेवाकी मनमानी, एक रातमें हुए केवल ज्ञानी, चौदाराजु रह्या भाली ॥ वीर० ॥१॥ अठारह राय हुआ भक्ता, दोय दोय पोसा कीना लगता। वीर सन्मुख रह्या निहाली ॥ वीर०.॥२॥ दिन दोयरो संथारो सीझो, सोला पहर लगे उपदेश दीघो। प्रभु मुक्ति गया कर्मने वाली ॥ वीर० ॥३॥ सातसे चेला ने चवदासो चेली, जाने मुक्ति महलमें दिया मेली, ज्यांरा कारा वीज दिया वाली, वीर० ॥ ४॥ प्रभु तीसवर्षवये सयम लीधो, निज आत्म कार्यने सिद्धकीयो, वर्ष वयालिस दीक्षा पाली, वीर० ॥५॥ एक राणी वरी हुई एक बेटी, जिके मुक्तिगया दुख दिया मेटी, जामाता हुओ ज्यारो जमाली, वीर० ॥६॥ प्रभुने एक बहन भने एक भाई, जिके खर्गे गया समकित पाई। श्रावकना
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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