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________________ वीरस्तुतिः। , पंचविहं आयारं, आयरमाणा तहा पयासंता, आयारं दंसंता, आयरिया तेण वुचंति ॥१॥ संस्कृतच्छायापंचविघमाचारमाचरमाणास्तथा प्रकाशमाना। आचारं दर्शयन्त आचार्यास्तेनोच्यन्त इति ॥ इति च विशेषावश्यके अथवा आ ईषत् अपरिपूर्णा इत्यर्थः, चारा हेरिका ये ते आचाराः, चारकल्पा इत्यर्थः, युक्तायुक्तविभागनिरूपणनिपुणा विनेया अतस्तेषु साधवो यथावच्छास्त्रार्थोपदेशकतया इत्याचार्याः । एषामाचारोपदेशकतयोपकारित्वात् , तमाचार्यम् । *द्वादशाङ्गशास्त्राध्यापयितारमित्यर्थः। "मन्त्रव्याख्याकृदाचार्य इत्यमरः" । मोक्षशा स्त्रोपदेष्टरि, श्रीधर्मगुरौ, "इति शब्दार्थचिन्तामणिः" । अथवा ___ * समवायांगसूत्रगतो द्वादशाझ्याः परिचयः संक्षिप्यात्र उद्धृतः स चैवम् । । आचाराङ्ग:-आयारेणं समणाणं निग्गंथाणं आयार-गोयर-विणयवेणइअ-ठाण-गमण-चंकमण-पमाण-जोग-झुंजण-भासा-समिति-गुत्तिसेज्जोवहि-भत्त-पाण-उग्गम-उप्पाय-एसणा-विसोहि-सुद्धासुद्धग्गहण-वय-नियमतवो वहाणसुपसत्यमाहिज्जइ xxxx पढमे अगे दो सुअक्खंधा, पणवीसं अज्झयणा, पंचासी उद्देसणकाला, पंचासी समुद्देसणकाला, अठारसपयसहस्साई। भावार्थ:-समवायांगसूत्रगत द्वादशांगी वाणीका संक्षेपसे इस प्रकार परिचय उद्धृत किया जाता है। ___ आचारांग:-आचारांग सूत्र में इस प्रकार के विषयों का वर्णन किया गया है यथा-श्रमण निग्रंथोंका सुप्रशस्त आचार, गोचर (मिक्षाविधि), विनय, वैनयिक, कायोत्सर्गादि सुन्दर और एकान्त स्थान, विहारभूम्यादि गमन, चंक्रमण अर्थात् टहलना, या शारीरिक श्रम दूर करने के लिए उपाश्रयमें वनसे वति में गमन, विधाम, आहारादि खाद्य पेय पदार्थों का माप, खाध्यायादि
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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