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________________ संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता २४७ भावार्थ-प्रभो! मेरी इतनी विनय तो अवश्य मानलेना, और मेरा यह वचन मी सरल भक्तिकी प्रेरणासे निकला है। हा वह वात मानना कि मुझे एक वार आत्मसामर्थ्य अर्पण करना, और ऐसा भाव भी प्रदान करना किजिसभावसे वस्तुधर्म यानी स्याद्वादकी कसौटीसे नित्य-एक-अनेक-अस्ति-नास्तिभेद-अमेदद्वारा छहों द्रव्योंके अनन्तशुद्ध धर्म, शंकादि दूषण रहित भासने लगें। साधकदशाकी साधना करके वे मेदरत्नत्रयी, सिद्धता, निष्पन्नता, वास्त'विकताका अनुभव करके उसे भोगने लगें । समस्त देवोंमे चन्द्रमा के समान सिद्ध भगवान्की विमल-निर्मल प्रभुताको प्रगट करे, अर्थात् स्याद्वाद ज्ञानके 'द्वारा साधकता प्रगट होती है, और उस साधकतासे' सिद्धता प्रगट होती है, यही एक विलक्षण सार पद्धति है ॥ ७ ॥ गुजराती भावार्थ-कोइक अवसरे श्रीजिनागमना अभ्यासे करीने ससार भ्रमण निमित्त जे ज्ञानावरणादि आवरणे आवृत पोतानी अनन्त आत्म शक्ति जाणीने अनादि परभावानुषंगता दोषने दुःखे उद्विग्न आत्मा ते पोतानी साधकता शक्ति अणदेखतो परमनिर्यामक समान चौवीशमा श्रीवीरभगवान्नां चरण शरण निर्धारीने, श्रीमहावीरप्रभुनी आगल प्रार्थना सहित विनति करे छे 'जे-हे नाथ! हे दीनदयाळ! हे प्रभुजी | मुझ सरीखो जे तत्वसाधक तथा आज्ञानिर्वाह मा असमर्थ, तेने मात्र नामथी सेवक जाणी तार, तार । ए गुणरोधक रूप दु खथी निस्तार, तुज सरीखा प्रभु विना बीजा कोने कहुं ? जगत्मा एटलं सुजशं लीजे, यद्यपि प्रभु तो सुजशना कामी नथी, परन्तु उपचारे भक्ति आतुरताए कहे छे जे मुज सरीखो दास ते यद्यपि राग द्वेष असयम अनु. ठानाशंसादिदोष, एकतादोष अनादरादिदोषरूप अवगुणे करी भर्यो छे, तो पण ताहरो कहेवाय छे । ते माटे हे दयानिधि ! भाव करुणाना निधान ! दीन जे हुँ रक,, अशरण दुखित-तत्वशून्य-ज्ञानादिसम्पदारहित-भावदरिद्रीमार्गनो विराधक-असयमसंचारी-महाविकारी-तमारी आज्ञाथी विमुख-अनादिनो उद्धृत एहवा मुझ ऊपर कृपा करीजे, ताहरी कृपा तेहीज त्राण (शरण) थशे,। यद्यपि अरिहंत तो कृपावंतज छे तो नवी कृपा शी करवी छे, तो पण अर्थी विचारे नहीं, माटे अर्थार्नु ए वचन छे, जे दयावंतनेज एम कहेवाय छे, जे हे देव ] तमे दयाना.भंडार छो, तमनेज अवलबे तरीश | ए सत्य ज छे त्री
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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