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________________ २१० । वीरस्तुतिः। । । भरने की अपेक्षा सब प्रकारके भोजन समान हैं। परंतु अन्नक्के भोजनमें जितना साधारण राग भाव है, उतना मांस भोजनमें नहीं । मांस भोजन में विशेष राग भाव है। जितना घास 'खानेवाली गायको चारा मिलने पर खाते समय सामान्य रागभाव है, उतना थोडा रागभाव चूहे मारनेवाली विल्लीको नहीं । विल्लीको मास भोजनमें विशेष रागभाव है। क्योंकि अन्नका भोजन सहजमें मिल जाता है और मांसका भोजन अतिशय कामादिककी अपेक्षा अथवा शरीरादिकके मोहकी अपेक्षा विशेष प्रयत्नसे तैयार किया जाता है। इसी तरह दिनका भोजन सव मनुष्योंको सहज ही प्राप्त होजाता है। इसीलिए उसमें साधारण रागभाव पाया जाता है, परन्तु रात्रि भोजनमें तो शरीरादिक व कामादिक पोषण करनेकी अपेक्षा विशेष रागभाव आता है। अत एव रात्रिभोजन सर्वथा त्याज्य ही है। इसके अतिरिक्त दीपकके प्रकाशमें वारीक जीव आखोंसे ठीक २ नहीं दीखते, तथा रात्रिमें दीपकके प्रकाशसे नाना प्रकारके ऐसे छोटे बडे जीव धूमने लगजाते हैं, जो दिनमें कभी दिखलाई नहीं पडते । अत एव रात्रि भोजनमें तो प्रत्यक्ष हिंसा है, और रात्रिमें भोजन करनेवाला हिंसासे कभी वच नहीं सकता। अतः जिस महाभाग्यशालीने रातमें आहार करना सर्वथा छोड. दिया है वही सच्चा अहिंसक है । रात्रि भोजनके छोडे विना अहिंसाव्रतकी सिद्धि नहीं हो सकती । अत एव कोई २ आचार्य इसे अणुव्रतमें भी गर्मित करते हैं। सागारधर्मामृतमें कहा है कि अहिंसावतका साधक रात्रि भोजनका त्याग अवश्य करता है। क्योंकि मूल व्रत की शुद्धि के लिए तथा अहिंसाव्रतकी रक्षाके निमित्त रात में चार प्रकार का आहारकरना तीनयोगसे धर्मी जीवोंके लिए वर्जित है। - पुराने विचारके मनुष्यों का यह भी मत है कि रात होनेपर भूत प्रेत आकर आहारको झूठा करदेते हैं। और बहुतसे जीव ऐसे भी हैं जिनको रात्रिमें देखना कठिन है। यदि जूं आदि जीव भोजन में खाया जाय तो जलोदर जैसे राजरोगोंका हो जाना कुछ असंभव नहीं। अत: रात्रि भोजनका त्यागी ही उपरोक्त आपत्तियोंसे मुक्तहोकर इन्द्रिय विलासके जालसे छूट सकता है। वनमालाने रात्रिभोजनके दोप की शपथ दिलवाई थी।
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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