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________________ संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता १४९ भगवान् महावीर का 'श्री आचाराग' और 'कल्पसूत्र' आदि सूत्रोंमें उनके जीवन चरितके अनुसार उनका जन्म क्षत्रियकुण्ड ग्राममें 'ज्ञातवंशीय' और 'काश्यपगोत्रीय' सिद्धार्थ क्षत्रिय राजाके घर त्रिशला क्षत्रियाणीकी कुक्षिसे हुआ था। . यह ज्ञातृवंश उस समयके प्रसिद्ध ईक्ष्वाकु, आदि क्षत्रियोंके विशाल कुलोंकी तरह प्रसिद्ध 'वंश' समझा जाता था। इस ज्ञातृवंशके क्षत्रिय प्रायः 'ज्ञातृक' के नामसे पहचाने जाते थे। और उनके इस 'ज्ञातृ कुलके सम्बन्ध से उनके नगरों के बाहर बनाए हुए खड-उद्यानों के नाम भी 'ज्ञातृखंड' के नामसे प्रसिद्ध थे । भगवान् महावीर प्रभुने 'कुण्डग्राम के समीपवर्ती 'ज्ञातृखंड' नामक वागमें दीक्षा ली थी । शास्त्र वचन तो इसकी खूब ही पुष्टि करता है। . जिनागममें 'ज्ञातृपुत्र' का प्रतिशब्द 'नायपुत्त' या 'नातपुत्त' के रूपमें और वुद्धागममें 'नाथपुत्त' या 'नाटपुत्त' के रुपमें जिस शब्दप्रयोगका उल्लेख देखेनमें आता है, वह भगवान महावीर के 'ज्ञातृवंश' का ही अर्थसूचक नाम है, इसे मान लेनेमें हमको ऊपरोक कारण मिलते हैं, 'नायपुत्त' या 'नातपुत्त' में दोनों नाम सस्कृत में 'शाहपुत्र' शब्दके ही प्राकृत रूप हैं, और 'नाथपुत्त' या 'नाटपुत्त' ये दोनों नाम भी इसी शब्दके 'पाली' रूप हैं। प्राकृत में 'त' को 'य' और पाली मे 'त' को 'थ' और 'थ' को 'ट' भी साधारणतया हो जाता है । दिगम्बर सूत्रोंमें 'शातपुत्र' का 'नाथपुत्त' इस शब्दको व्यवहृत होता देखा जाता है। इस प्रकार भाषा और भावकी दृष्टिसे देखते हुए भी ये सब अलग २ नाम मूल 'शातपुत्र' शब्दमें मिल जाते हैं । ये सब नाम 'ज्ञातपुत्र' शब्दसे वनाए गए हैं। इसमें शंका करने के लिए जरासा भी स्थान नहीं है। प्राचीन कालमें वंशके नामसे परिचय 'करानेकी प्रथा होनेसे भगवान् महावीर प्रभुके जीवनविषयक परिचय श्रीजिनागमोंमें और वौद्धागमोंमें 'नातपुत्त' या 'नाथपुत्त' शब्दसे और भगवान् महावीरके शिष्योंका परिचय 'नातपुत्तीय' या 'नाथपुत्तीय' शब्दसे विशेषत दिया गया है। श्रीजिनागमके १२ अगोंमें छठवा अग "णायधम्मकहाओ" है, उसमें उपर्युक्त आया हुआ 'णाय' शब्द भी भगवान् महावीरका वंशवाचक "नायपुत्त" के साथ गहरा सम्बन्ध रखता है। प्राकृतमें 'न' को 'ण' हो जाना तो
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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