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________________ १४२ . ..... - वीरस्तुतिः । - .... कोई उस पर विश्वास नहीं करता, वदनाम मुफ्तमें हो जाता हैं। 'कुपथ्य करनेकी तरह न जाने क्या २ दुःख-दोष झूठे मनुष्यमें बढ जाते है।" "झूठ बोलने वाला नरक, निगोद, और पशु योनिमें जन्म लेकर मरता रहता है।" "थोडा सा असत्यका प्रयोग करनेवाला मी नरकमें उत्पन्न होता है।" • "ज्ञानिओंने ज्ञान और चरित्रका मूल तो सत्य ही बताया है, सत्यवादीके , पैरोंकी धूलिसे पृथ्वी पवित्र हो जाती है।" "जो सदा सत्य बोलते हैं उनका भूत, प्रेत, सर्प, सिंह आदि कुछ भी नहीं विगाड सकते, ।” “सिर मुंडा कर, जटा रखा कर, नग्न रह कर, कपडे पहिन कर या तपको तप कर मी जो असत्य बोलता है तव तो उसे अछूतसे भी बढ कर निन्द्य समझना चाहिए।" “एक तरफ तो असत्यका पाप है, दूसरी ओर ससारके सब पाप हैं, यदि इन दोनों पापोंको तोला भी जाय तो असत्यका पाप वढ निकलेगा।" "डाकुओं और व्यभिचारिओंके पापका प्रायश्चित हो सकता है, परन्तु असत्यवादीका प्रतिकार नहीं ।” “सत्यवादीका देवोंको भी पक्ष होता है, राजा भी उस पर शासन नहीं चला सकता, उन पर अमिका उपद्रव नहीं होने पाता, . क्योंकि सत्यकी महिमा अपार है।" “सत्यका संसार भरके योगियोंने खूब ही गायन किया है, जिसमें शुभचन्द्राचार्यके कुछ वचनामृत आपके पठनार्थ सामने रखते हैं। उन्होंने कहा है कि-"जो संयमी मुनि धीरज रख कर सयमकी रक्षा या मुनि दीक्षाकी धुराको धारण करता है, वह मुनि वचनके जंगलमें सत्य रूपी वृक्षका आरोप करता है।" "यमनियमादिव्रतोंका समूह एक मात्र अहिंसाकी रक्षाके लिए कहा है,अहिंसा व्रत यदि असत्यसे दूषित होतो वह ऊंचे पदको कभी मी नहीं पासकता । असत्य वचनके होनेसे अहिंसाका प्रतिपालन अशक्य है।" "जो वचन जीवोंका इष्ट हित करनेवाला हो तो वह असत्य भी सत्य है। और जो वचन पाप सहित हिंसारूप कार्यको पुष्ट करता है वह सत्य भी 'असत्य है और निन्द्य भी है।" "जो मुनि अनेक जन्मके उत्पन्न दुखोंकी शान्तिके लिए तपश्चरण करता है वह निरन्तर सत्यही वोलता है, क्योंकि असत्यवचन बोलनेसे मुनित्वका होना असम्भव है।" "जो वचन सत्य हो, करुणासे भरपूर हो, किसीके विरुद्ध न हो, आकुलता रहित हो, असभ्य या
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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