SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०६ . वीरस्तुतिः। . . शान्तिकर और खादिष्ट वस्तु है, इसी प्रकार विशेष तपसे जगत्की तीनों कालकी अवस्थाओंको नित्य और परिवर्तन शील माननेवालोंमें मुनि-भगवान् महावीर प्रभु श्रीध्वजाकी तरह समस्त लोकमें महान् तपसे तप कर निकले हुए कुंदनकी तरह सुशोमित थे ॥ २० ॥ गुजराती अनुवाद-सर्व समुद्रोमा खयंभूरमण समुद्र मोटो छे, तेन कांठा पर देवताओ वायुसेवन करवाने आवे छे, भुवनपति देवोमा धरणेन्द्र देवराज प्रधान छे, मीठा अने सरस पदार्थोमा शेरडीना रस शान्तिकर तेमज मीष्ट तथा खादिष्ट छे, तेवीज रीते तप उपधानथी जगत्नी त्रणे कालनी अवस्थाओने नित्य तेमज परिवर्तनशील माननाराओमा मुनींद्र श्री भगवान् महावीर प्रभु समस्त लोकमां शुद्ध कुन्दननी माफक सुशोभित छ ॥ २० ॥ हत्थीसु एरावणमाहु णाए, सीहो मिगाणं सलिलाण गंगा। ' पक्खीसु वा गरुले वेणुदेवो, णिवाणवादीणिह णायपुत्ते ॥ २१॥ . (संस्कृतच्छाया) हस्तिष्वैरावणमाहुर्शात, सिंहो मृगाणां सलिलानां गंगा। पक्षिषु वा गरुत्मान् वेणुदेवो, निर्वाणवादिनामिहज्ञातपुत्रः॥२१॥ सं० टीका-हस्तिषु करिवरेषु मध्ये, यथैरावतं शक्रवाहनं ज्ञातं प्रसिद्धं "ऐरावतोऽभ्रमातंगरावणाम्रमुवल्लभाः इत्यमरः" । "कुंजरो, वारणो हत्थीत्यभिधानप्पदीपिका"। दृष्टान्तभूतं वा प्रधानमाहुस्तज्ज्ञाः, अथवा हस्तं रतं रत्नत्रयं तदस्यास्तीति हस्ती तेषु हस्तिषु, "हत्थो पाणिम्हि, रतने, गणे, सोण्डाय, भन्तरे; इति अमिधानप्पदीपिका" । ऐरावतो नागरंगस्तद्वच्छोमनीयः । अथवा हस्तो नागस्तोयदस्तन्मध्य ऐरावत इवेति । अथवा धृतवस्तुहस्तिषु हि ऐरावतो नारंगो नारंगसहशः
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy