SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७८ दूसरोंके उपकारके लिए अपना तन, मन और धन आदि सब कुछ खर्च कर डाला है । आजतक जितने सत्यशोधक हुए हैं उनमें यदि आप खोज करेंगे तो मिलसे अधिक उदार और कार्यतत्पर पुरुष शायद ही कोई मिलेगा। उसके विचार ठीक हों या न हों, यह दूसरी बात है, परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि उसने उन लोगोंको खूब ही सचेत किया जो 'वावा-वाक्यं प्रमाणं' कहकर प्राचीन सिद्धान्तोंपर ही सारा दारोमदार रखते थे और इस कारण जिनकी विचारशक्तिको जंग खा गई थी । स्वाधीन विचारोंकी महिमाको बढ़ाने और गतानुगतिकताको नष्ट करनेके लिए मिलने जो उद्योग और परिश्रम किया वह असाधारण था। उसकी लेखनीने इस विषयमें वड़ा काम किया । यद्यपि वह पक्का सुधारक और स्वाधीनचेता था; परन्तु उन सुधारकोंके जैसा उच्छृखल और अविचारी न था जो कि पुरानी इमारतको जड़से उखाड़कर उसके स्थानमें बिलकुल नई, इमारत खड़ी करना चाहते हैं, अथवा एक ही नियमको सब जगह एक ही रूपमें चरितार्थ करना चाहते हैं । उन्नतिके पथपर अग्रसर होनेवाले प्रत्येक देशमें मिल जैसे महापुरुषोंकी आवश्यकता होती है। बिना ऐसे पुरुषोंका अवतार हुए कोई भी देश सुख और स्वाधीनता नहीं प्राप्त कर सकता । इस समय जहाँ स्वाधीन विचार करना महापाप समझा जाता है और जहाँ स्वाधीनचेताओंकी मिट्टी पलीद होती है, उस भारतवर्षके लिए तो एक नहीं सैकड़ों मिलोंकी जरूरत है। समाप्त।
SR No.010689
Book TitleJohn Stuart Mil Jivan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages84
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy