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________________ ४० आ जाती और आगे दोनोंकी लेखरचना या ग्रन्थरचना एकमतसे होने लगती । परन्तु सन् १८३५ से पिताका स्वास्थ्य दिनपर दिन बिगड़ने लगा। तदन्तर कफक्षयके स्पष्ट चिह्न दिखने लगे और आखिर २३ जून सन् १८३६ में उसका देहावसान हो गया । पृथ्वीसे एक वास्तविक पिता और स्वाधीनचेता विद्वान् उठ गया । जेम्स मिलका जोश और उसकी बुद्धिका वैभव मरते मरते तक कम नहीं हुआ । उस समय तक जिन जिन बातोंमें उसने अपना चित्त लगाया था उन सबके विषयमें कंठगत प्राण होने तक उसकी आस्था बनी रही । धर्मक विषयमें उसके जो विचार थे उनमें भी कालके बिलकुल समीप आ पहुँचने तक रत्ती भर भी अन्तर नहीं पड़ा । जिस समय उसे विश्वास हो गया कि अब मैं जल्दी मर जाऊँगा उस समय उसको यह सोचकर बहुत सन्तोष हुआ कि जब मैंने जन्म लिया था तबसे अब संसारकी दशा कुछ अच्छी हैऔर उसे अच्छी करनेके लिए मैंने भी कुछ किया है। पर साथ ही यह विचार कर उसे कुछ खेद भी हुआ कि अब मेरे जीवनकी समाप्ति है, इस लिए मुझे और लोकसेवा करनेका अवकाश नहीं मिल सकता। इस विषयमें किसीको कुछ सन्देह नहीं है कि जेम्स मिलने संसारकी और अपने देशकी विपुल सेवा की। तो भी यह बात विचारणीय है कि उसके बाद उसका जितना नाम रहना चाहिए था, उतना नहीं रहा । इसका एक कारण यह मालूम होता है कि उसके समयमें बेन्थामकी जो दिगन्त-व्यापिनी यशोदुन्दुभी बज रही थी उसमें उसकी कीर्ति लुप्त हो गई । दूसरा कारण यह जान पड़ता है कि यद्यपि उस समयके बहुतसे लोगोंने उसके अनेक मत स्वीकार
SR No.010689
Book TitleJohn Stuart Mil Jivan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages84
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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