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________________ ३८ मिलने अपनी विचारशक्तिसे जो सिद्धान्त स्थिर किये थे उन्हें व्यवहारिकताका रूप इसीकी शिक्षाके प्रसादसे मिला था । मेरे सिद्धान्तोंमें अत्यन्त विश्वस्त कौन है और संशययुक्त कौन है, इसका निर्णय उसने इसीके संयोगसे किया था । नहीं तो आश्चर्य नहीं कि उसे यह विश्वास हो जाता कि मेरे सिद्धान्त सर्वथा सच्चे हैं, सब समयोंके लिये हैं और सबपर प्रयुक्त हो सकते हैं । मिलके जिन जिन ग्रन्थों में व्यावहारिक विचारोंकी अधिकता है, समझ लो कि वे एक मस्तकसे नहीं, उक्त दोनों मस्तकोंके संयोगसे उत्पन्न हुए हैं। राजनैतिक विचारों में परिवर्तन । इस बीचमें मिलको ' टॉकेवेली' नामक प्रसिद्ध फ्रेंच विद्वानका ' अमेरिकाका प्रजासत्ताक राज्य ' नामक ग्रन्थ मिला । इस उत्कृष्ट ग्रन्थका उसने बहुत ही बारीकीसे अध्ययन किया। इससे उसने प्रजासत्ताक राज्यसे क्या क्या लाभ होते हैं और क्या क्या हानियाँ होती हैं, यह अच्छी तरहसे समझ लिया। फल इसका यह हुआ कि अब वह प्रजासत्ताकसे प्रतिनिधिसत्ताक राज्यपद्धतिको अच्छी समझने लगा। प्रजासत्ताक राज्यपद्धतिमें जो अन्याय और अत्याचार होते हैं उन्हें उसने प्रतिनिधिसत्ताक राज्यपद्धतिसे कम समझे । इसका निरूपण उसने अपने प्रतिनिधिसत्ताक राज्यव्यवस्था ' नामक ग्रन्थमें स्वयं किया है । ऊपर लिखे हुए ग्रन्थसे उसका एकमत और भी अच्छा बन गया। वह यह कि सामाजिक कामोंके करनेका अधिकार जितने अधिक लोगोंमें फैलाया जा सके उतनेमें फैलाना चाहिए और सरकारको ऐसे कामोंसे जुदा रखना चाहिए। इससे लोगोंको राजनैतिक शिक्षा तो मिलती ही है, साथ ही प्रजासत्ताक व्यवस्थासे जो अनिष्ट हुआ करते हैं उनकी भी रुकावट होती है । क्योंकि इससे
SR No.010689
Book TitleJohn Stuart Mil Jivan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages84
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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