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________________ १२ धर्मपर विश्वास रहा है अथवा विश्वास कराया गया है और आगे जब उसकी बुद्धिका विकाश हुआ है तब वह विश्वास या तो उड़ गया है-या पोला पड़ गया है । परन्तु मिलकी दशा इससे बिलकुल उलटी हुई । इसके पिताका जैसा कि पहले कहा जा चुका है, ईसाई धर्मके किसी भी पन्थपर विश्वास न था। इसलिये उसने उसे धार्मिक शिक्षा बिलकुल ही नहीं दी । वह अकसर कहा करता था कि यह बात समझमें नहीं आती है और न किसी युक्तिसे सिद्ध हो सकती है कि जिस सृष्टिमें अपार दुःख देखे जाते हैं वह किसी सर्वशक्तिमान् और दयालु व्यक्तिने बनाई होगी। भला, यह कैसे मान लिया जाय कि नरकलोकका बनानेवाला दयालु है ? इतनेपर भी लोग एक ईश्वरकी कल्पना करके उसकी पूजा करते हैं । परन्तु इसका कारण यह नहीं है कि उन्होंने ऐसे व्यक्तिका होना सिद्ध कर लिया है। नहीं वे इसका कभी विचार ही नहीं, करते हैं। केवल परम्पराके अनुसार चलनेकी उनकी आदत पड़ गई है और कुछ नहीं । जेम्सका विश्वास था कि जो धर्म केवल काल्पनिक रचना है-वास्तविक नहीं है-यदि मैं उसकी शिक्षा अपने लड़कोको दूंगा तो अपने कर्तव्यसे च्युत हो जाऊँगा । इसलिये वह अपने लड़केको समझाता था कि यह सृष्टि कब, किस तरह और किसके द्वारा बनाई गई, इस विषयमें सर्वत्र अज्ञान फैला हुआ है। " हमको किसने बनाया ?" इस प्रश्नका यथार्थ और युक्तिसिद्ध उत्तर नहीं दिया जा सकता। यदि कहा जाय कि “ ईश्वरने ” तो तत्काल ही दूसरा प्रश्न खड़ा हो जाता है कि, “ उस ईश्वरको किसने बनाया होगा ?" इसके सिवा वह यह भी बतला देता था कि आजतक लोग इन प्रनोका क्या उत्तर देते आये हैं । अर्थात्, जुदा जुदा धर्मोमें इस
SR No.010689
Book TitleJohn Stuart Mil Jivan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages84
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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