SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर सकते हैं । परन्तु यह ठीक नहीं है। पहले अपने प्रतिपक्षीकी इमारतको ढाना चाहिये और फिर उसपर अपनी नई इमारत खड़ी करनी चाहिये । साकेटीस (सुकरात) इसी शैलीपर चलता था । यह शैली तब आ सकती है जब तर्कशास्त्रका अभ्यास और उसका उपयोग लड़कपनसे ही करा दिया जाय । तर्कशास्त्रसम्बन्धी ग्रन्थों के अध्ययन और मननसे मिलको जो समय मिलता था उसमें वह लैटिन और ग्रीक विद्वानोंके ग्रन्थोंको पढ़ा करता था। इनमेंसे उसने प्लेटोके ग्रन्थ अपने पिताकी सिफारिशसे बहुत ही विचारपूर्वक पढ़े। क्योंकि जेम्सका विश्वास था कि मनको अच्छी तरहसे संस्कृत करनेके लिये प्लेटोके समान उत्तम ग्रन्थ दूसरे नहीं हैं । इसी समय, सन् १८१८ में जेम्सने अपने भारतवर्षके विशाल इतिहासको छपाकर प्रकाशित किया। मिलने उसे भी मन लगाकर पढ़ डाला। इसके दूसरे वर्ष जेम्सने ईस्ट इंडिया कम्पनीके आफिसमें नौकरी कर ली । परन्तु शिक्षा उसकी बराबर जारी रही । मिलको उसी वर्ष उसने अर्थशास्त्रका पारायण करा दिया। इसके बाद उसने रिकार्डोके अर्थशास्त्रको पढ़ाया। रिकार्डो अर्थशास्त्रका प्रसिद्ध विद्वान् था। जेम्सकी उससे गाढ़ी मित्रता थी। उसका यह ग्रन्थ तत्काल ही प्रकाशित हुआ था । परन्तु जेम्सको उससे सन्तोष नहीं हुआ। वह कोई दूसरा ग्रन्थ पढ़ाता, परन्तु तबतक कोई दूसरा बालोपयोगी अर्थशास्त्र बना ही नहीं था। लाचार उसने टहलनेके समय अर्थशास्त्रके एक एक विषयको स्वयं अच्छी तरहसे समझाना शुरू किया और फिर उसी पद्धतिपर उसने ' अर्थशास्त्रके मूलतत्त्व ' नामकी पुस्तक रच डाली । इसके पीछे उसने मि० एडम स्मिथकी बनाई हुई
SR No.010689
Book TitleJohn Stuart Mil Jivan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages84
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy