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________________ स्वच्छ मन : उदार विचार क्योंकि प्रतिदिन की अपेक्षा आज उसमें कुछ नवीनता आई है । दूसरे ने कहायदि आप प्रतिदिन णमोकार मंत्र की माला फेरते हैं तो अतिपरिचय से मंत्र पदों को वोलते हुए भी आपका ध्यान कहीं का कहीं चला जाता है। अब यदि आप उसे आनुपूर्वी से फेरेगे तो अनुभव करेंगे कि आप का चित्त एकाग्र और स्थिर होकर नवकार पदों का उच्चारण कर रहा है। अव तीसरे ने कहाभाई, पुस्तक से क्यों पढ़ते हो ? मैं तुम्हें एक पद, दोहा या श्लोक बताता हूं, तुम मुख से ही बोला करो। दस पाँच दिन के अभ्यास से वह कंठस्थ हो जायगा । उसके कहने के अनुसार यदि आपने उसे कंठस्थ कर लिया तो आप अनुभव करेंगे कि पुस्तक वाचने की अपेक्षा अधिक रस उसके मौखिक बोलने में आ रहा है। चौधे व्यक्ति ने कहा-आप जो कुछ सामायिकादि करते हैं, वह तो ठीक है। परन्तु यदि नवीन ज्ञान का अभ्यास करोगे तो आपको नया प्रकाश मिलेगा । आपने उसके कथानुसार नित्य कुछ न कुछ समय नवीन ज्ञान के उपार्जन में लगाया तो आप स्वयं अनुभव करेंगे कि हृदय में कितना आनन्द आ रहा । अव पाँचवें व्यक्ति ने कहा-भाई, जो नया ज्ञान उपार्जन कर रहे हो तो उसके अर्थ का मंथन, मनन और चिन्तन भी करो । फिर देखो कितना रस आता है। अब आप पढ़ी और सीखी बात का मनन-चिन्तन करने लगे तो और भी नवीन-रस का संचार भाप के हृदय में होगा । इन सब बातों के कहने का सार यही है कि मनुष्य ज्यों ज्यों नवीनता को प्राप्त करता है त्यों त्यों ही उसके हृदय में एक अपूर्व आनन्द की अनुभूति होती जाती है। बचपन में जब आप लोग पौना, सवाया, ड्योढ़ा आदि पढ़ते थे, तब उनका भाव न समझने से रस नहीं आता था । अब जव व्यापार करने मे और हिसाब-किताव करने में उनका उपयोग आता है, तब आपको बचपन में पढ़े हुए उस पीना-सवाया का आनन्द आता है । बचपन में वह जंजाल प्रतीत होता था और आज वह एक महत्त्वपूर्ण कार्य प्रतीत होता है। बचपन में कोई हिसाव पट्टी-पेसिल के सहारे करते थे और अव मौखिक ही करते हैं। एक पंसारी से अनेक लोग अनेक प्रकार की वस्तुएं देने के लिए कहते हैं, वह सत्र को देता भी जाता है। और सबसे उनका निश्चित मूल्य भी लेता जाता है, उसे हिसाव करने के लिए पट्टी पंसिल नहीं लेनी पड़ती है, क्योंकि उसके दिमाग में गणित का पाठ अच्छी तरह रमा हुआ है। इसी प्रकार आप लोगों को अपना दिमाग आत्मा के व्यापार में भी लगा देना चाहिए। फिर भाप आनन्द का अनुभव करेगे यऔर उससे कभी दूर नहीं होना चाहेंगे। देखो, आपने रामायण और महाभारत को कई बार सुना है। उसे यदि
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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