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________________ ८० प्रवचन-सुधा बटका भर लेने की बात कही थी। तब ऊंट बोला-ठीक है भाई, मैं भूल गया होऊ । जब तू गवाही देता है, तब यह जीभ के बटका भर लेवे । यह वाह कार ऊंटने अपना थोड़ा सा मुख खोला । उसमें बन्दर का मुख जीभ को पकड़ने के लिए नहीं जा सकता था। अतः वह बोला- इसमें तो मेरा मुख नहीं जाता है। ऊंट बोला----इसके लिए मैं क्या करूं? तव सियाल ने बन्दर से कहा-तू अलग हो । मैं बटका भरता हूं। तब ऊंटने कहा-चाहे तू वटका भर चाहे यह वटका भने मुझे इसमें कोई इनकार नहीं है । तब जैसे ही इंट के मुख में अपना मुख डाला वैसे ही ऊंट ने अपने ओंठ बन्द कर लिये। अव सियाल का शरीर अधर लटकता रह गया । बन्दर बोला-भगवान्, खूब सुनी । इसे झूठी गवाही का फल आपने तुरन्त ही दे दिया। भाइयो, याद रखो-झूठी गवाहियां देना, झूठे लेख, दस्तावेज लिखना और दूसरे के साथ छल-कपट कर उसे अपने जाल में फंसाना बहुत भारी पाप है । आखिर में सच, सच ही रहता है और झूठ, झूठ ही रहता है । कहा है कि जो जाके मारे धुरी, उसके ही लगता है छुरा । जो औरो को चिते वुरा, उसका ही होता है बुरा ।। देखो, धवल सेठ ने श्रीपाल का बुरा चाहा, तो अन्त में उसका क्या हाल हुआ, यह वात मुनिजी आगे आपको सुनारेंगे ही और आप लोग सुनेंगे भी कि अन्त में श्रीपाल का मनचाहा होता है, अथवा धवल का मनचाहा होता है ? वहां तो अपने आप दूध का दूध और पानी का पानी हो जायगा । आप लोग सोच लो, विचार लो, खूब विचार लो। मैं जो कहता हूं, वह माप सुनते हैं । परन्तु जव उसे मंजूर कर ग्रहण करो, तभी लाभ है । __ मैंने संवत्सरी के दिन एक बात आप लोगों से कही थी संघ के हित में । वह आप लोगों ने सुनी और मापने कहा था-महाराज, करेंगे । परन्तु पीछे आप लोगों ने उस पर ध्यान नहीं दिया है । और ध्यान भी क्यों रखेगे? भाई, जो वात संघ के लिए हितकर है, उसे तो याद रखना चाहिए । अब भी आप लोग उस पर विचार करना और ध्यान देना कि मैंने क्या कहा था ? और हमें क्या करना है ? संभवतः उस दिन आप के श्री संघ के अध्यक्षजी भी यहां उपस्थित थे। आप लोग उनसे भी पूछ लेना और उस पर ध्यान देना । अच्छी बात को सदा याद रखने और बुरी बात को भूलने में ही मनुष्य का कल्याण है । मेरा तो आप लोगों से यही कहना है कि लोभ को छोड़ो और
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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