SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मन भी धवल रखिए। ७६ इसलिए भाइयो, न्यायमार्ग से धन कमायो। यदि न्याय मार्ग से चलने पर कम भी द्रव्य प्राप्त होता हो, तो भी कोई चिन्ता मत करो और मत घरडाओ । न्याय पर चलने वाला कभी धोखा नही खा सकता । यदि कोई उसके साथ धोखा करगा भी, तो वही उलटा धोखा खायगा । जो दूसरे का बुरा सोचता है और दूसरे को खोटी सलाह देता है, उसका दड उसे ही भोगना पडेगा । एक बार एक कट को काटा लग गया । अत दर्द से पीडित होकर वह बैठ गया। इतने मे एक बन्दर वहा आ गया। उसने पूछा ॐट बावा, ऐसे क्यो पडे हो ? उसने कहा- मेरे पैर म काटा लग गया है, इससे चल नहीं सकता । बन्दर बोला-~~-यदि मैं काटा निकाल दू तो तुम मुझे क्या दोगे २ अट बोला--जिम दिन तुझे खाना न मिले तो मेरे शरीर पर एक बट का 'भर लेना और भोजन कर लेना । बन्दर ने कहा-समय पर इनकार तो नही करोगे ? ऊट ने कहा-~नहीं करूगा । वन्दर ने उसका काटा निकाल दिया । ऊट अपने स्थान को चला गया और वन्दर भी जगल मे चला गया । वहा पर उसे एक सियाल मिला। उससे पूछा कि तुमने अट का काटा निकाल दिया है। उसने कहा-हा निकाल दिया है । सियाल बोला- तुमने बहुत बुरा काम किया । यदि अट भर जाता, तो हम, तुम और गिद्ध बहत दिन तक मजा मारते । वन्दर ने कहा--भाई दुखी के दुख को दूर करना तो इन्सान का काम है । मियाल वोला--देख, मैं जैसा कहता हू, तू वैसा ही करना । जाकर के उससे वह कि मैं तो आज ही भूखा हू, अत मुझ वटका भरने दे । जब वह बटका भर लेने को तैयार हो जाय तो कहना कि तेरे दूसरे अग तो कठोर हैं, में उनका वटका नहीं भर सकता है। मुझे तो तू अपनी जीभ का ही वटका मग्ने दे । बन्दर ने कहा--भाई, यह बात गलत है। उसने तो शरीर के घटका भरने की बात कही थी । सियाल वोला--तु जाकर कह तो सही। मैं आकर गवाही दे दूगा । बन्दर भोला था, अत उस सियाल की वातो मे आगया। भाई, ये भोले प्राणी ही दूसरो के माया जाल मे फस जाते है । बन्दर ऊट के पास पहुचा और पीछे से सियाल भी वहा जा पहुचा । बन्दर ने कट से कहा-~भाई, तुम मेरे बडे उपकारी हो। कट बोला--क्या आज भोजन नहीं मिला । बन्दर वोला- हा भाई, यही बात है । तव उसने कहाअच्छा तुम मेरे शरीर का बटका भर लो । तव बन्दर बोला--मेरे साथ शरीर का कौल नहीं है 1 मैं तो जीभ का बटका भरूगा । ऊंट बोला-भाई, जीभ का कौल नहीं है। शरीर का कौल है। तुम अपनी नीयत मत बिगाडो । तब मियाल बीच मे आकर बोला- नीयत तो तुम विगाड रहे हो 1 जो तुमने कहा था, वह मैंने सुना है । मैं ईश्वर की साक्षी से कहता हू कि तुमने जीभ के
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy