SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६८ प्रवचन-सुधा पड़ौसी उसकी पूजी का आनन्द ले सकते थे? नहीं। तब क्या ऐसा लोभी मनुष्य ४८ मिनिट की सामायिक करेगा ? क्या वह धर्मस्थान में बैठ कर स्थिरता से व्याख्यान सुन सकेगा ? और क्या संवर-पोषध आदि कर सकेगा? नहीं । उसके तो केवल एक ही धुन है कि यदि एक भी मिनिट इन धर्म-कार्यों में लगा दिया तो धन कमाने में कमी रह जायगी । उसे रात-दिन, चौबीसों घंटे ही धन कमाने का भूत सवार रहता है। स्वप्न भी वह ऐसे ही देखता है। यदि भाग्यवश कोई अड़चन पैदा हो गई, या कोई रुकावट आगई तो उसकी पूत्ति मे ही लगा रहता है। उसे एक क्षण को भी सुख-शान्ति नसीब नहीं है । जो धन के लिए स्वयं दुःख उठाता है वह दूसरों को दुःखों को क्या परवाह करेगा ? उसे दूसरों से क्या लेना देना है ? अनीति का बोलवाला भाइयो, आज आपके सामने देश की माली हालत का यथार्थ चित्र उपस्थित है । एक भाई जिस पर किसी ने मुकद्दमा दायर किया हुआ है, वह घर के सव काम छोड़ कर मुकद्दमे की पैरवी करने के लिये सर्दी, गर्मी, बर्षा के होते हुए भी अदालत जाता है और हाजिर होता है। जज कहता है-~-- आज मुझे अवकाश नहीं है, अतः आगे पेशी बढ़ा दो। यह सुनकर उसे कितना दुःख होता है । इस प्रकार वह एक-दो वार नही, अनेक बार तारीखो पर हाजिर होता है, मगर उसका मुकद्दमा पुकारा ही नहीं जाता है और उसे अपना बयान देने का अवसर ही नहीं प्राप्त होता है। अन्त में यह अत्यन्त दुःखी होकर लोगों से पूछता है कि अब मैं क्या करूं ? कुछ लोग जज के मुर्गे बने हुये घूमते रहते हैं, वे कहते हैं कि क्या करो। अरे, कुछ भेंटपूजा करो । जब वह भेंट-पूजा कर आता है तब कहीं मुकद्दमे की कार्यवाही शुरू होती है। कार्यवाही शुरू होने पर भी अनेक तारीखें रखी जाती है। क्योंकि अभी पूजा में कमी रह गई हैं, अतः पेशियां बढ़ा-बढ़ा करके परेशान किया जाता है। यदि निर्लोभी जज हो तो एक-दो पेशी में ही फैसला सुना देता है। परन्तु जहां रिश्वत खाने की आदत पड़ी हुई है वहां जल्दी फैसलाकर देना कहां संभव है ? भाई ऐसे जजों को भी धवल सेठ के भाई-वधु ही समझना चाहिये, जो नाना प्रकार के अनीति मार्गों से धन-संचय करने में संलग्न रहते हैं। धवल सेठ के सामने थे श्रीपाल जैसे उपकारी, दयालु और सरल स्वभावी व्यक्ति । परन्तु लोभ के वशीभूत होकर वह उनको भी मारने के लिए तैयार हो गया । फिर वह दूसरों की तो क्या दया पालेगा? आज लोगों में धवल
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy