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________________ मन भी धवल रखिए ! भाइयो, अभी आप लोगो के सामने श्रीपाल का कथानक चल रहा था। उसी जमाने मे धवल सेठ हुआ । उसकी छल-प्रपच भरी कुटिलनीति से आज दिन तक उसकी अपयश-भरी बातें आप लोगो के सामने आ रही हैं। विचारने की बात यह है कि उस जमाने मे धवल सेठ तो एक ही हुआ था । परन्तु आज उस धवल सेठ के दुर्गुणो के धारक यदि हम टटोलें और छानबीन करे तो क्या कम मिलेगे ? नही; किन्तु वहत मिलेंगे । उस धवल सेठ को हम बुरा कहते है । परन्तु आज छिपे और चौडे हमको अनेक धवल सेठ मिल रहे है । क्यो मिल रहे है ? क्या कारण है कि उस जमाने में एक ही वह इतना प्रख्यात हो गया ? भाई, बात यह है कि जव शान्ति का वातावरण होता है, धर्म का प्रसारण होता है और भले आदमी हमे दृष्टिगोचर होते है, तब यदि एकआध इस प्रकार का दुराचारी मिल जाय तो वह मर्वन प्रन्यात हुए विना नही रहता है । जैसे यह सुन्दर मकान है, उत्तम-उत्तम वस्तुए यथास्थान रखी हुई हैं और चारो ओर से सौरभमय वातावरण का प्रसार हो रहा है । अव यदि यहा पर किसी कोने में किसी जानवर का मृत कलेवर पडा हो और उसकी दुर्गन्ध आती हो तो क्या वह सहन होगी ? कभी नही होगी। दुनिया तुरन्त कहेगी कि यह दुर्गन्ध कहा से आरही है। यह सुरम्य स्थान तो दुर्गन्ध योग्य नहीं है । अत उस दुर्गन्ध फैलाने वाले कलेवर को वहा से निकाल कर तुरन्त वाहिर फेक देते हैं । परन्तु जहा सारा मकान ही दुर्गन्ध से भरा हुआ
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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