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________________ w आत्म-विजेता का मार्ग विजय के चार रूप : दूसरी आज विजयादशमी का दिन है । विजय का अर्थ है जीतना । जीत दो प्रकार की होती है- एक जीत और जीत के साथ हार होती है । एक हार के साथ जीत 1 एक जीत के साथ जीत । और एक हार के साथ हार । ये चार बातें हुईं । जीत के साथ हार क्या है ? जीवन में वाजी जीते पांच सौ हजार, लाख, दस लाख की । परन्तु आपको पता है कि हजार की जीत के साथ दो हजार और लाख की जीत के साथ दो लाख उसको देने पड़ेंगे। आपने सट्ट में कमा लिए, परन्तु पूनम को देने पड़े तो यह हार के साथ जीत है । एक चोर ने चोरी की और धन का झोला भर लाया । परन्तु पकड़ा गया । मार पड़ी और जेल जाने की नौबत आ गई तो यह जीत के साथ हार है । युद्ध में जिन्होंने विजय प्राप्त की, हजारों-लाखों को खपाया । पीछे उसे उससे भी चलवान मिल गया तो यह जीत के साथ हार है । हार के साथ जीत-कभी ऐसा ही अवसर आ जाता है, जब बुद्धिमान पुरुष को भी कुछ समय के लिए धैर्य धारण करके चुप बैठना पड़ता है कि अभी वोलने का समय नहीं है । भाई, बुद्धिमान पुरुष समय की प्रतीक्षा करते हैं । कहा भी हे 'विद्वान् समयं प्रतीक्षते' । अर्थात् जो विद्वान पुरुष होता है, वह योग्य अवसर की प्रतीक्षा करता है और जब उचित अवसर देखता है, तभी बोलता है । ऐसे धैर्य धारण करनेवाले के लिए दुनिया कहती है, कि यह हार गया, किसी कार्य के योग्य ૪
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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