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________________ प्रवचन-सुधा तीसरे दिन राजा ने रात्रि मे फिर स्वप्न देखा कि कोई व्यक्ति कह रहा है कि हे राजन्, देख, उसे अन्न-जल का त्याग किये हुए आज तीसरा दिन है। तू भव भी उसकी बात को मान ले। यदि कल दोपहर तक तूने उसकी बात नहीं मानी तो उसी समय तेरा मरण हो जायगा। राजा की स्वप्न देखते ही नींद खुल गई। वह कुछ भय-भीत हुआ। राजा ने अपने स्वप्न की बात कही तो उन दोनों ने भी कहा—महाराज यही स्वप्न हम दोनों ने भी देखा है। तव राजा बोला इस विपय में दीवान साहब से भी परामर्श कर लेना चाहिए। रानी ने कहा--महाराज, यह बात अपन लोगों से बाहर नहीं जानी चाहिये । दीवान साहब के भ्रष्टाचार के कारण ही तो राज्य की यह दुर्दशा हो रही है। अतः उनसे इस विषय में विचार-विमर्श करना ठीक नही है। तब रानी ने गाड़ी भिजवा करके राजकुमार के द्वारा उस व्यक्ति को कहलवाया कि आप पारणा करे और धन को गाड़ी में भर कर राजमहल भिजवा देवें । राजकुमार ने जाकर उससे अन्न-जल ग्रहण करने और धन राजमहल भिजवाने की वात कही। वह वोला—न में अन्नजल ही ग्रहण करूंगा और न धन ही दूंगा। जब महाराज मुझे चोर मान कर मेरा धन दण्डस्वरूप लेंगे, तभी मैं अन्न जल ग्रहण करूंगा और धन भी तभी दूंगा। राजकुमार उसके इस उत्तर से निराश होकर वापिस चले आये और अपनी माताजी से सब हाल कह सुनाया। रानी बोली-बेटा यह भी अपनी हठ पर डटा हुआ है और महाराज भी अपनी हठ पर डटे हुए हैं । अब क्या किया जाये ? दोनों सलाह करके महाराज साहव के पास गये और बोले-महाराज, क्या उसके प्राण लेना है, अथवा स्वयं के मरने का निश्चय किया है ? महाराज बोले-महारानी जी, स्वप्न से आसार तो ऐसे ही दिखते हैं। पर मुझे निश्चय कसे हो कि वह चोर है ? तब रानी ने कहा---महाराज, इतने प्रमाण आपको मिल चुके हैं, फिर भी आप उसे चोर मानने को तैयार नही हैं, यह बड़े आश्चर्य की बात है। इस प्रकार समझा-बुझा कर रानी राजा को लिवाकर उसके घर पहुंची। वहां जाकर राजा ने उससे कहा--भाई, भोजन करो और अपना धन मुझे दे दो। राजा की यह वात सुनकर वह वोला-~-महाराज, जब तक आप मुझे चोर नहीं मानेंगे और मेरे पास के धन की चोरी का माल मान करके नहीं लेंगे, तब तक न मैं अन्न-जल ही ग्रहण करूंगा और न धन ही दूंगा। राजा फिर भी उसे चोर मानने को तैयार नहीं हुआ। इतने में बारह बजने का समय होने को आया और राजा की तबियत एकदम विगड़ गई। वह छटपटा कर मूच्छित हो गया । राजा को तुरन्त राजमहल में ले जाया गया। चिकित्सक बुलाये गये और सर्व
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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