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________________ दो शब्द साधारण मनुष्य की वाणी 'वचन' कहलाती है, किन्तु किसी ज्ञानी, साधक एवं अन्तर्मुखी चिन्तक की वाणी 'प्रवचन' होती है। उसकी वाणी में एक विशिष्ट बल, प्रेरणा और दिव्यता-भव्यता का चमत्कार छिपा रहता है। श्रोता के हृदय को सीधा स्पर्श कर विजली की भांति आन्दोलित करने की क्षमता उस वाणी में होती है । प्रवचन-सुधा के प्रवचन पढ़ते समय पाठक को कुछ ऐसा ही अनुभव होगा इन प्रवचनों मे जितनी सरलता और सहजता है, उतना ही चुटीलापन और हृदय को उद्बोधित करने की तीव्रता भी है। मुनिश्री की वाणी विल्कुल सहज रूप में नदी प्रवाह की भांति बहती हुई सी लगती है, उसमें न कृत्रिमत्ता है, न घुमाव है और न व्यर्थ का शब्दो का उफान ! ऐसा लगता है, जैसे पाठक स्वयं वक्ता के सामने खडा है, और साक्षात् उसको वाणी सुन रहा है प्रवचनों की इतनी सहजता, स्वाभाविकता और हृदय-स्पर्शिता बहुत कम प्रवक्ताओं में मिलती है। इन प्रवचनों में जीवन के विविध पक्षों पर, विभिन्न समस्याओ पर मुनिश्री ने बड़े ही व्यावहारिक और सहजगम्य ढंग से अपना चिन्तन प्रस्तुत किया है। कही-कही विपय को ऐतिहासिक एवं तुलनात्मक दृष्टि से व्यापक बनाकर उसकी गहराई तक श्रोताओं को ले जाने का प्रयत्न भी किया गया है। इससे प्रवचनकार को वहुश्रुतता, और सूक्ष्म-प्रतिभा का भी स्पष्ट परिचय मिलता है।
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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