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________________ কষ্টে जैनधर्म में तप: स्वरूप और विश्लेषण SER BASA %3 - SSSSS : प्रवचन माला, पुष्प ५ तीन खण्डो मे २३ अध्याय ४ महत्व पूर्ण परिशिष्ट __ सम्पादक श्रीचन्द सुराना 'सरस' पृष्ठ सय्या '६१६ प्लास्टिक कवर युक्त मूल्य १०) रु० 'तप' जैन धर्म का प्राण है, उसका सर्वाग सुन्दर अतिसूक्ष्म एव अति गभीर विवेचन जैनधर्म के अनेकानेक पथो मे किया गया है । तप सम्बन्धी समस्त जन साहित्य का सारभूत विवेचन और सरल-सरस भाषा शैली मे मनोवैज्ञानिक विश्लेपण प्रस्तुत पुस्तक में लिया गया है। श्री मरुधरकेसरीजी महाराज साहब के सपूर्ण प्रवचन साहित्य का दोहन करके तपसम्बन्धी प्रवचनो को यथाक्रम रखा गया है, और उसके बाह्यआभ्यन्तर भेदों का विस्तार के साथ वर्णन किया गया है। पुस्तक की भूमिका लिखते हए उपाध्याय श्री अमर मुनि जी ने लिखा है- "जिज्ञासु साधक को इस एक ही पुस्तक मे वह सब कुछ मिल जाता है, जो वह तप' के सम्बन्ध में जानना चाहता है।" 'तप' के सम्बन्ध मे यह एक अद्वितीय पुस्तक है। अनशन आदि वाह्य तप, तथा प्रायश्चित्त, विनय, ध्यान, कायोत्सर्ग आदि आभ्यन्तर तप का विवेचन सूब विस्तार के साथ किया गया है। साथ ही तपोजन्य लब्धिया जैन व जैनेतर ग्रंथो म तप का स्वरूप, सज्ञान तप, सकाम तप आदि विविध विषय पर वडा ही गभीर चिंतन इस पुस्तक मे मिलता है। विद्वानो, तत्वद्रष्टा मुनिवरो तथा विविध पत्र पत्रिकाओ ने इस पुस्तक की मुक्त कठ से प्रशमा की है।'
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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