SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 391
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७८ प्रवचन-सुधा की। उनके ६६ शिष्य हुए। उनमे एक तो वे स्वय और इक्कीस अन्य शिष्यो का परिवार आज सब का सव श्रमण सघ मे सम्मिलित है। यद्यपि कितने ही सन्त उदासीन होकर आज अलग हो गये हैं, तथापि उन्हे कल श्रमण सघ मे मिलना पडेगा, क्योकि यह समय की पुकार है और एक होने का युग है। विना एक हुए काम नहीं चल सकेगा। पूर्वज कह गये है कि 'संघे शक्ति कलौ युगे' अर्थात् इस कलियुग मे कोई एक व्यक्ति महान् काम नहीं कर सकता। किन्तु अनेक लोगो का सघ महान् काम कर सकेगा । जैसे एक-एक तृण मे शक्ति नगण्य होती है, पर वे ही मिल कर एक मोटी रस्सी के रूप में परिणत होके मदोन्मत्त हाथियो को भी वाधने में समर्थ हो जाते हैं । इसलिए बार-बार प्रेरणा करनी पड़ती है कि सब एक हो जावे । आज ये अलग हुए सन्त भले ही कहे कि हम एक साथ नहीं बैठेगे, परन्तु समय सव को एक करके रहेगा। आज से कुछ पहिले रंगर, चमार आदि हरिजनो (भगियो) के साथ बैठना पसन्द नहीं करते थे। परन्तु आज आप क्या देख रहे हैं ? आज काग्रेस के अध्यक्ष (जगजीवनराम) कौन है ? जो लोग पहिले मन्दिरो को देहली पर भी पर नहीं रख सकते थे, वे ही हरिजन मन्दिरो मे प्रवेश कर रहे हैं और सरकारी सरक्षण के साथ जा रहे हैं और अनेक उच्च पदो पर आसीन है और सब पर शासन कर रहे है। इसलिए भाई, जो समय करायगा, वही सबको करना पड़ेगा। जो उससे पूर्व करेगे, उनकी वाह-वाही होगी और यदि पीछे करेंगे तो फिर क्या है। आज सबके एक होने की आवश्यकता है, तभी समाज मे शक्ति रह सकेगी। यह श्रमणसघ कोई नया नाम नहीं है। जो साधु के दश धर्मो का पालन करे, वही श्नमण है। आज सप्रदायवादियो की दीवाले फ्ट रही है... और थभे लगाते-लगाते भी गिर रही है। जिस सम्प्रदाय में कुछ समय पूर्व दो तीन सौ साधु थे, उसमे आज दो-दो, तीन-तीन रह गये है। यद्यपि वे जागरूक हैं और कहते हैं कि हम इस सम्प्रदाय को चलावेंगे। पर मेरा तो सर्व सन्तो से यही निवेदन है कि यदि आप सब लोग मिलकर काम करेंगे तो आपका, श्रमण सब का और सारे समाज का भला है । मैं तो सबको समान दृष्टि से देखता है। जो हमारे साथ है, वे भी श्रमण है, जो हम से वाहिर है, वे भी श्रमण हैं, और जो हमसे अलग होकर चले गये हे, वे भी श्रमण है। लाडू के सभी खेरे (दाने) मीठे हैं। यह हो सकता है कि किसी दाने पर चाशनी कम चढी हो और किसी पर अधिक । हलवाई ने तो सब पर समान ही चाशनी चढाने का प्रयत्न किया है। अत हम सबको एक होना आवश्यक है और यही समय की पुकार है !
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy