SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 375
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६२ प्रवचन सुधा ममत्व नहीं है । यह कह उन्होंने जैसे ही शहर में प्रवेश किया तो उनको लोगों ने लट्ठ मार दिये। पूज्यश्री के मस्तक से खून झरने लगा। उन लोगों ने साथ के अन्य सन्तों को मारना प्रारम्भ कर दिया । परन्तु उन्होंने कोई परवाह न की । जब उन लोगों ने देखा कि मारने के बाद भी शहर से प्रवेश कर ही रहे हैं, तब उन्होंने शहर भर में यह सूचित कर दिया कि जो कोई भी इन लोगों को ठहरने के लिए स्थान देगा, उसे भी हम देख लेंगे। यह सुनकर किसी ने भी उन सन्तों को ठहरने के लिए स्थान नहीं दिया 1 उनके पीछे काटने कुत्ते लगा दिये, पत्थर फेके और इसी प्रकार के उपद्रव किए। परन्तु वे पीछे नहीं लौटे । एक नाई ने आकर पूछा, महाराज, क्या बात है ? पूज्य श्री ने कहा—भाई, जो फरसना है वह होता है । हमें तो ठहरने के लिए स्थान भर की आवश्यकता है । नाई बोला--यह शिवजी का मन्दिर है, आप यहां विराजो । पूज्यश्री ने कहा - भाई, हमारे निमित्त से किसी भाई को कष्ट तो नहीं होगा ? उसने कहा – महाराज, हम कण्ट मिटाने का ही काम कर रहे हैं । किसी को कोई कष्ट नहीं होगा, आप विराजिये । पूज्यश्री सब संघ के साथ आज्ञा लेकर वहाँ ठहर गये । जव सन्त लोग पानी लेने के लिए भी नगर में जावें तो विपक्षी लोग कुत्ते लगा देवें। और पत्थर मार कर पात्र फोड़ देवें। इस प्रकार तीन दिन तक लगातार इतने कप्ट दिए कि जिसकी कोई सीमा नहीं । परन्तु पूज्यश्री जी ने किसी को कोई निन्दा नहीं की। तीन दिन के बाद वहां के भंडारोजी खवासजी के जमाईजी का परवाना पहुंचा कि सन्त लोग आरहे है. उनका पूरा ध्यान रखना। परन्तु इसका भी संकेत पूज्यश्री ने नही कराया । और समभाव पूर्वक आहार-पानी के लिए नगर में घूमते रहे । चौथे दिन कचहरी में हाकिम से कहा कि कुछ सन्त लोग समदड़ी से यहां आने वाले हैं सो आने पर हमें सूचित करना । तब नीचे के अहलकार ने कहा-हुजूर, उन साधुओं को आये तीन दिन हो गए हैं और शहर में उनकी मिट्टी-पलीत हो रही है । यह सुनते ही हाकिम निकला। उस समय उनका जमाना था, वे लोग सौ-पचास अदमियों को साथ लिए विना नहीं निकलते थे। उन्होंने शिवजी के मन्दिर में जा कर सन्तों की दशा देखी तो उन्हें दुःख हुआ और बोले-हाकिम साहब, हमें दावा नहीं करना था, जो आपसे फरियाद करते। उन्होने सब सन्तों को साथ में लिवा ले जाकर कचहरी के सामने ठहराया, उनके प्रवचनों को व्यवस्था की और स्वयं प्रवचन सुनने को आने लगे । यह देख कर विपक्षियों के हौसले पस्त हो गये और वे ठंडे पड़ गये । पूज्य श्री के प्रभाव को देखकर तथा उनके प्रवचन सुनकर उन विपक्षियों में
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy