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________________ प्रवचन-सुधा चिन्तामणि रत्न सभी प्रकार के लौकिक और पारलौकिक अभीष्ट सुखो को दे सकता है । रस-कु भिका मे निकाला गया रस लोहे को ही सोना बनाने की क्षमता रखता है, शेष धातुओ को नहीं । परन्तु यह स्वानुभवरूपी रम प्रत्येक प्राणी को शुह, बुद्ध मिड बनाने की सामर्थ्य रखता है, भाई, मोक्ष का सत्य और सही मार्ग आत्मानुभव ही है । जो व्यक्ति आत्मानुभव से शून्य है, वह भगवद्-उपदिष्ट सन्मार्ग पर ठहर सकेगा, क्योकि उमके मस्तिष्क मे तो नाना प्रकार के सकल्प विकल्प भरे हुए है जिनको आत्मानुभव हो जाता है और जो आत्मानुभव मे सलग्न है उन्हें ससार की कोई भी शस्ति डिगा नहीं सकती है। लोगो के पास डिगन्ने के जितने भी साधन हैं, वे सव भौतिक है और वे भौतिक शरीर पर ही अपना प्रभाव दिखा सकते हैं, अर्थात् लाठी, तलवार, बन्दूक और भाला आदि शास्त्रो से अथवा अग्नि आदि से शरीर का ही विनाश कर सकते हैं। किन्तु अमूर्त आत्मा का कुछ भी नही बिगाड़ सकते है । आप लोगो को ज्ञात है कि पाच सौ मुनि कुरुजागन देश में गये । वहा के गजा के दीवान नमुचि ब्राह्मण ने सघ के आचार्य से कहा ---महाराज, यदि आप लोग जीवित रहना चाहते हैं, तो अपना सिद्धान्त छोडकर मेरा सिद्धान्त स्वीकार कर लेवें। अन्यथा में किसी को भी जीवित नहीं छोडू गा । तब सघ आचार्य ने कहाहमारा मिहान्त को हमारी आत्माओ मे रमा है, उसे कोई आत्मा से अलग कर नहीं सकता और आत्मा तो अरूपी है वह किसी से खडित या नष्ट हो ही नही सकती । वह अविनाशी है सदा अवस्थित है - अन्वए वि अवट्ठिए वि इम आत्मा को शस्त्र छेद नहीं सकते, अत अच्छेद्य है, अग्नि जला नहीं सब ती, अत यह यदाह्य है, पानी भिगा या गला नहीं सकता अत यह यक्लेद्य है, पवन सुखा नही सकता, अत यह अशोष्य है। यह नित्य है, सर्वगत है, र पाणु है, अचल है, और सनातन है । __आचार्य ने और भी कहा --अरे नमुचि, तुझे यदि यह अरमान है कि मैं इन साधुओं को भय दिखाकर, कष्ट देकर और उपर्मग करके इन्हे सिद्धान्त स विचलित कर दूंगा, तो तेग यह निरा भ्रम है । जीने का भय इन वाहिरी दश प्राणो का होता है आत्मा को नही होता है। हम साधुओ को इन दश द्रा प्राणों की कोई चिता नहीं रहती है। हमारे ज्ञान-दर्शनरूप मात्र प्राण तो नदा ही हमार साप रहेगे, वे निकाल में भी हमसे अलग होने वाले नहीं है और न कोई उन्हें हमम यलग कर ही माता है ।
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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