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________________ ३५४ प्रवनन-सुधा ____ भाइयो सुदर्शन या यह बयानका हमे अनेक शिक्षाए देना है। पहली तो यह है कि हमे सदा उत्तम सगति करना चाहिए। और प्राणान्त सपाट के आने पर भी अपने व्रत-नियम पर पूर्ण रूप से दृढ रहना चाहिए। कभी किसी भी प्रकार के बड़े से बडे प्रलोभन में नहीं फगना चाहिए । दूसरी शिक्षा हमारी बहिनो को मनोरमा मे लेनी चाहिए जैसे उसने पति पर आये सकट की बात सुनी तो तुल्त यह नियम लेकर बैठ गई कि जब तक मेरे पति का सकट दूर नहीं होगा, तब तक मेरे अन्न जन का त्याग है और वह भगवद्-भक्ति में लीन हो गई। वह जानती थी कि नकट में उद्धारक धर्म ही है, अत उसी का शरण लेना चाहिए। तीसरी शिक्षा सर्वमाधारण के लिए यह मिलती है कि किसी धर्मात्मा व्यक्ति पर कोई सकट आवे तो सब मिलकर उसका बचाव करने लिए शासक वर्ग के सामने अपनी आवाज को बुलन्द करें। यदि आज तु नसी गणी के ऊपर आये सकट के समय सारी जैन समाज ने मिलकर एक स्वर से अपनी आवाज शासन के सम्मुख बुलन्द की होती, तो यह कभी सभव नहीं था कि उन्हे चातुर्मास पूर्ण होने के पूर्व ही विहार करना पड़ना। सब लोग यह समाचार पढ कर रह गये और किसी के कान मे जूतक नहीं रेंगी। सव यही सोचते रहे कि यह तो दूसरे सम्प्रदाय का झगडा है, हमे इसके लिए क्या करना है ? ___भाइयो, आज यदि आप लोगो को जीवित रहना है और धर्म की व समाज की लाज रखनी है, तो मम्प्रदायवाद के सकुचित दायरे म से बाहिर आओ। आज न तो दस्सा, वीसा, पचा और ढया का भेद-भाव रखने की आवश्यकता है और न तेरहपंथी, वीसपथीं, गुमानपथीं, वाइस सम्प्रदाय और स्थानकवासी या मन्दिरमार्गी भेद-भावो के रखने की आवश्यकता है। किन्तु सबको एक भगवान महावीर के झडे के नीचे एकत्रित होते की आवश्यकता है । आज इन सब भेद-भावो की दीवालो को हटाकर एक विशाल रगमच पर आने की और भगवान महावीर के शासन को धारण करने और प्रचार करने की आवश्यकता है । माज पारस्परिक कलह मिटाने की और सद्भाव वटाने की आवश्यकता है। आप लोग यह न सोचे महाराज (मे) वैप, परिवर्तन करने वाले हैं, या मेरी श्रद्धा में शिथिलता आगई है। न मैं वेष बदलने वाला है और न मेरी श्रद्धा में ही कोई शिथिलता आई है । परन्तु आज समय की पुकार है कि यदि तुम्हें और हमे जीवित रहना है तो सबको एक होकर, हाथ से हाथ और कधे से कंधा मिलाकर के चलना होगा । आज
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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