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________________ बर्मकथा का ध्येय ___अन्त में उस दासी ने रानी की प्रेरणा पर एक उपाय सोचा। उसने कुम्हार के यहां जाकर मिट्टी के सात पुतले बनवाये--जो कि आकार-प्रकार में ठीक सुदर्शन के समान थे। इधर रानी ने राजा से अनुज्ञा लेकर अठाईव्रत करने का प्रपच रचा। रात के समय वह दासी एक पुतले को वस्त्र से ढककर और अपनी पीठ पर लाद करके आई और राजमहल मे घुसने लगी । द्वारपाल ने उसे रोका । पर वह जब जबरन घुसने लगी तव द्वारपाल का धक्का पाकर उसने पुतले को पृथ्वी पर पटक दिया और रोना-धोना मचा दिया कि हाय, अव महारानी जी विना पुतले के दर्शन किये पारणा कैसे करेंगी। दासी की यह बात सुनकर द्वारपाल डर गया और बोला-पंडिते, आज तू मुझे क्षमा कर मुझ से भूल हो गई । आगे से ऐसी भूल नही होगी । इस प्रकार वह दासी प्रतिदिन एक एक पुतला विना रोक-टोक के राजमहल में लाती रही । आठचे दिन अष्टमी का पोपधोपवास ग्रहण कर सुदर्शन सैठ पौपध शाला में सदा की भांति कायोत्सर्ग धारणा कर प्रतिमा योग से अवस्थित थे तव दासी ने आधी रात के समय वहां जाकर और उन्हें अपनी पीठ पर लाद कर तथा ऊपर से वस्त्र ढककर रानी के महल में पहुंचा दिया । ।। रानी ने सुदर्शन से कहा-हे मेरे आराध्य देव, हे सौभाग्य-शालिन, हे पुण्याधिकारिन्, तुम्हारे दर्शन पाकर मैं धन्य हो गई हूं और तुम भी कृतार्थ हो गये हो। अव मौन छोड़ो और आखे खोलो । देखो-राजरानी तुम्हारे प्रणय की भिखारिणी बन करके तुम्हारे सामने खड़ी है। परन्तु सुदर्शन ने तो पोपधशाला से दासी द्वारा उठाने के समय ही यह नियम ले लिया था कि जब तक यह मेरा उपसर्ग दूर नहीं होगा, तब तक मेरे मौन है और अन्न-जल का भी त्याग है । अत. वे मूत्ति के समान अवस्थित रहे। रानी ने उनको रिझाने के लिए नाना प्रकार के हाव-भाव के साथ गीत गाये और नृत्य भी किया और पुरुप को चलायमान करने की जो-जो भी कलाएं वह जानती थीसभी की। परन्तु सुदर्शन तो सुमेरु के समान ही अडोल बने रहे । जब उसने देखा कि मेरे राग प्रदर्शन का इस पर कोई असर नहीं हो रहा है, तब उसने भय दिखाना प्रारम्भ किया और कहा-सुदर्शन, भलीभांति सोच लो । यदि मेरे साथ कामभोग नही करोगे, तो जानते हो, मैं तुम्हें पहरेदारो से पकड़वा दूंगी । फिर तुम्हारी क्या दुर्गति होगी, सो तुम स्वयं ही सोच लो । पर भाई, सुदर्शन को क्या सोचना था। वे तो पहिले ही सोच चुके थे। अतः अपने ध्यान में मस्त थे । वे तो जानते थे कि वीतराग सर्वज्ञ ने जो देखा है, वही होगा।
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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