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________________ धर्मकथा का ध्येय ३४१ इस तन को धोये क्या हुआ, इस दिल को धोना चाहिए । शिला बनाओ शील की अरु ज्ञान का साबुन सही। सत्य का पानी मिला है, साफ धोना चाहिये ।इस।। पुरोहित जी, इस शरीर को साबुन लगा-लगा कर और तेल-फुलेल रगड़रगड़ कर बड़ों जल से स्नान किया, तो क्या यह शुद्ध हो जाता है ? इस शरीर के भीतर रहने वाली वस्तुओं की और तो दृष्टि-पात कर, संसार में जितनी भी अपवित्र वस्तुए हैं, वे सब इसमें भरी हुई हैं । किमी मिट्टी के घड़े में मलमूत्रादि अशुचि पदार्थ भरकर ऊपर से घड़े को जल से धोने पर क्या वह शुद्ध हो जायगा ? शौचधर्म तो हृदय को शुचि (पवित्र) रखने से होता है और उसे विनयमूल धर्म के धारक साधुजन ही धारण करते हैं । जो शुद्ध शील का पालन करते हैं, ज्ञान-ध्यान और तप में संलग्न रहते हैं, उनके ही शुचिता संभव है । अन्यथा निरन्तर पानी में ही गोता लगानेवाली मछलियां और मगर मच्छ कच्छादि सभी को पवित्र मानना पड़ेगा । कहा भी है प्राणी सदा शुचि शील जप तप ज्ञान ध्यान प्रभाव तें। नित गंग--जमुन समुद्र न्हाये अशुचि दोष स्वमावर्ते । ऊपर अमल, मल भर्यो भीतर, कौन विधि घट शुचि कहैं ? बहु देह मैली, सुगुण-थैली शौच गुण सावू लहै । पुरोहितजी, विचार तो करो ऐसी अपवित्र वस्तुओं से भरा यह देह क्या यमुना-गंगा और समुद्र में स्नान करने से पवित्र हो सकता है ? कभी नही हो सकता । धर्म तो हृदय की शुद्धि पर निर्भर है । यदि हृदय शुद्ध नहीं है तो बाहिर से कितना ही साफ रहा जाय, वह अशुद्ध ही है । पुरोहित जी, और भी देखो-~-शरीर की शुद्धि करते हुये यदि कुछ अधिक रगड़ लग गई और खून आ गया, उस पर मक्खियां बैठ गई और पानी आदि के योग से उसमें रक्खी (पीव) पड़ गई तो वह दुर्गन्ध मारने लगता है और कीड़े पड़ जाते हैं। फिर वह शुद्धता क्या काम आई ? जरा आप आखें खोल कर देखें कि पानी से शरीर को शुद्धि होती है क्या ? अरे, जल से मुख की शुद्धि के लिए हजारों कुल्ले कर लो, फिर भी क्या मुख शुद्ध हो गया? कितने सुगन्धित मंजनों से और वनस्पति की दातुनों से रगड़ने पर भी क्या मुख में शुद्धि आ जाती है ? यदि हजारों वार मुख-शुद्धि करने के पश्चात आप मुख का एक कुल्ला किसी दूसरे के ऊपर डाल दोगे तो क्या वह अपने को अपवित्र नहीं मानेगा और क्या आप से लड़ने के लिए उद्यत नहीं होगा ? अवश्य ही होगा। और भी देखो-~-आपने बहुत सा द्रव्य
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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